Thursday, September 21, 2017

वह किसान

बादल भरे गुस्से में देखो
बिजलियों का फरमान आया है
कहर आएगा एक बार फिर
हवाओं का पैगाम आया है

लगती नहीं ये व्यर्थ कहीं भी
गर्जना इन बादलों की
शांत चितवन बैठे थे वो
अब भड़की है ज्वाला सी













कौन है जा भिड़ने वाला
शांत पड़े इन शोलों से
काम हुआ लगता है शायद
मानव के इन बोलों से

 लगता है उजालों को
वजह स्वाधीन रहा होगा  
किस्मत जिसकी देख खुदा भी
बादलों से जा बोला होगा

ताक रहा महीनों से वो
आसमान को बारम बार
उसके लिए सुखदाई होगा
बारिश का पहला त्यौहार

कितना सौन्दर्य भरा है उसमें
ऊपर कुर्ता , नीचे धोती
लगता कहीं चमक रही है
एक श्वेत दीप सी ज्योति

बीवी बच्चे हैं उसके भी
दीदार कर रहे राह का उसकी
बाहर झांक रही हड्डियां उनकी
पलकें बिछाए घर लौटने की

कितनी भयावह रात वह होगी
क्या खाली हाथ जाएगा घर को
प्रताड़ना की इस हद को
क्या यूं ही सह जाएगा वो

क्या जवाब देगा घर में
सांत्वना सरकार से लाया हूं
दिन भर इंतजार कर
केवल दीदार में पाया हूं

त्रिस्कृत होता पल पल वह
लगा होगा मंदिरों में झांकने
अभिमान भरा आंखो में जिसकी
गुहार लगाता खुदा के सामने

निश्छल , निर्भय बचपन से जो
कसौटी देने आया होगा
उस दिन तो जमाना भी
फुट फुटकर रोया होगा

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