जन्मभूमि आज भी
पलकें बिछाए बैठी है
अपनी संतानों के
इंतजार में
जो बरसों पहले
अपनी जन्मभूमि को
छोड़ चुके थे
वह उनके लिए मात्र
एक जगह थी
मगर
जन्मभूमि के लिए
वह हमेशा
उसकी संतान थे
जो उनको हमेशा
अपने आंगन में
हंसता खेलता देखना चाहती थी
मगर वह भी न जाने
किस बंधन में बंधे थे
जो इतनी समस्या के बावजूद भी
वापस आने को
तैयार न थे
एक वही दिन था
जब जन्मभूमि की आंखे
नम थी
उसके बाद,उसको भी
मुर्दों की भांति
आदत पड़ चुकी थी
हमेशा अकेले रहने की
Nice Yuvraj keep it up
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