Thursday, February 15, 2018

धूल

हवा के साथ फुहार सी
निर्झर उड़ती जाती धूल
मौसम में बहार सी
नित्य एहसास कराती धूल

बारिश में सौंधी खुशबू
खींच कहीं से लाती धूल
शरीर लतपत हो जाए गर
अपनापन ले आती धूल



बच्चों के खिलौने की
कमी दूर करती धूल
जमीन से ऊंचा उठने पर
जमीं पर पटक जाती धूल

बंजर पड़े गांवों को
चादर सी ढक जाती धूल
आंगन की उन यादों पर
मरहम सी छा जाती धूल

तूफानों से दंगल करती
कहर सी बन जाती धूल
कभी नवीन संदेशा बनकर
लंबा सफ़र तय कर जाती धूल

यादों का सूनापन तोड़ती
हमसाथी बन जाती धूल
अकेले पड़े उन सायों को
जिंदगी भर आजमाती धूल

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