हवा के साथ फुहार सी
निर्झर उड़ती जाती धूल
मौसम में बहार सी
नित्य एहसास कराती धूल
बारिश में सौंधी खुशबू
खींच कहीं से लाती धूल
शरीर लतपत हो जाए गर
अपनापन ले आती धूल
बच्चों के खिलौने की
कमी दूर करती धूल
जमीन से ऊंचा उठने पर
जमीं पर पटक जाती धूल
बंजर पड़े गांवों को
चादर सी ढक जाती धूल
आंगन की उन यादों पर
मरहम सी छा जाती धूल
तूफानों से दंगल करती
कहर सी बन जाती धूल
कभी नवीन संदेशा बनकर
लंबा सफ़र तय कर जाती धूल
यादों का सूनापन तोड़ती
हमसाथी बन जाती धूल
अकेले पड़े उन सायों को
जिंदगी भर आजमाती धूल
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