Thursday, March 19, 2020

हे मेघा तुम अब आये

स्वप्न देखे बीज बोकर
रातों की नींदें खोकर
फसल जब लहराई
सिंचाई की जरूरत आयी
चारों तरफ तब सूखा था
कुआ खुद ही भूखा था
मिट्टी में दरारें थी
किसानों की कराहें थी
तब भी तुम जागे नहीं,
फसल चक्र अब बीत गया
रक्त धमनियों से सूख गया
सूखा वर्ष घोषित होकर
मानसून प्यासा रोकर
चला गया,
अब पूस के महीने में
ये बाढ़ कैसी आयी
चैन से सोए "हल्कू" की
नींद किसने जगाई
रहा शेष यदि कुछ 
उसे भी तुम उजाड़ गए
जरूरत थी तब सोये रहे
और हे मेघा,
तुम अब आये

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