जिंदगी के इस धूमिल होते सफर में
एक शाम
खयाल आता है
उन लोगो का
जो सूरज डूबने के बाद भी
नहीं थमते हैं
खयाल कम और सवाल ज्यादा
न जाने किससे
जो इस प्रशासन को चला रहा है
या फिर उससे
जो इस दुनिया को
चला रहा है
उन जिंदगियों के लिए
जो केवल पेट के खातिर नहीं थमती
बड़ी ही नश्वर चीज है यह पेट
जो केवल
अपने खातिर
किसी की जिंदगी तक नहीं बख्शता
सारी मार काट
केवल उसी के खातिर
सोचा भी नहीं जा सकता
कोई इतना निर्मम कैसे हो सकता है
क्या इतनी सी दया
या थोड़ी करुणा
इसको भी दे दी होती
तो शायद
न ही आज इतनी बहसें होती
न इतने दोष मडे जाते
और न ही न्याय की जरूरत होती
और न ही इतनी
बेरहम मौते होती