उस नदी के बीच
बहाव में खड़ा एक आदमी
एक छड़ी के सहारे
कुछ ढूंढ रहा था
जब मेरी नजर
नदी के दोनों तरफ
जिंदगी की कश्मकश देखकर
थोड़ा मचल बैठी थी
और फिर देख बैठा
जिंदगी का एक कड़वा सच
कुछ अपनी पूंजी मंदिरों में,
और कुछ बाजारों में बहा आए
उस चस्मे वाली आदमी की
फोटो वाले कागज का घमंड भी
यहां चूर हो गया
सब अपना रोना रोने में व्यस्त
और जिंदगी पैसा कमाने में व्यस्त
आखिर वह नदी
इनके कौन से पाप धो रही थी
जिसमें उस दिन से पहले
इन्हीं की शौच बही थी
या जिसमें इनके पूर्वजों की अस्थियां
और उसी नदी में
आज वह अपने पाप धोने में
फिर एक बार वही गलती कर बैठे
जो जिंदगी भर की
वह बीच नदी में खड़ा आदमी
जो भूखा मरने को तैयार था
वह कोई और नहीं
खुद अवतार था
और आज इंसान को दोबारा मिला मौका भी
बाकी दिनों की तरह
बस बेकार था