कोमल भूमि की बाँहों में
शूलों से चुभते हैं वह दाग
जो युद्ध समर में
जल बहाव से बहाए गए
जिस तरुण भूमि ने
जाने कितने ही
दर्द झेले हैं
और अपने ही सपूतों का
लहु संजोया है
मगर उससे अधिक पीड़ा
उसे उसके ही समर में
तब मिली जब
उसमे उगाने वाला
उसमे ही जीने वाला
उसे अपनी मां समझने वाला
किसान
कुछ लोगो द्वारा छला गया
यह खाद रुपी दाग
भूमि की उर्वरता पर प्रश्न थे
पेटों पर मरहम थे
जो उन शूलों से
अधिक तेजी से चुभते हैं
आज उसका सीना लाल है
और लोग कहते हैं
सब प्रौद्योगिकी कमाल है
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