Saturday, August 25, 2018

पलायन ३

यह तबाही
उनकी नहीं
जन्मभूमि की अधिक थी
जो उनको
अपनी गोद में
हंसते खेलते देखना चाहती थी
मगर वहां
उनके दफन होने को
दो गज जमीन भी नसीब न थी
और शायद
यह उनके ही कर्म होंगे
क्यूंकि आज
दोनों जगह सन्नाटा पसरा है।

Thursday, August 16, 2018

इशारे

घर के किसी कोने में
अखबारों का ढेर
देख है कभी
सूना है कभी उन आवाज़ों को
उन बातों को
जो वह आपस में करते हैं
जिन बातों से वह झगड़ते हैं

मत करना कोशिश
कभी उनको सुनने की
गलत समझ बैठेंगे तुम्हें
चाहे खुद जल जाएंगे 
मगर ख़ाक कर देंगे तुम्हें
ऐसा ही फल होता है
दूसरों की बातें
चुपके से सुनने का
यहां की बात वहां कर
नज़रों में अच्छा बनने का
क्यों न अखबारों को
कुछ काम दिया जाए
कम से कम अफवाहों को
उनके कानों से बचाया जाए 

Wednesday, August 08, 2018

खुशी के पल

देखा है कभी चश्में को, नाक से लिपटते हुए
देखा है कभी बालियों को, कान से चिपकते हुए
जैसे गले में टाई और, हाथ में घड़ी लिपट जाती है
ऐसे ही बचपन तुझसे, जिंदगी लिपटना चाहती है
बस छोटे से कद तक, सिमटना चाहती है
खुशियों के दामन में, खोना चाहती है
जी फाड़कर नादानों सा, हंसना चाहती है
भीड़ से कहीं दूर ये जिंदगी, बचपन चाहती है

गिरे उठे जख्म लगे
उम्र की ठोकर पड़े
घाव हुए लालिमा छाई
बचपन तेरी याद आई

होश आया नज़रें अब, कमजोर हो चुकी हैं
फिदाओं की बहारें, कहीं खो चुकी हैं
खुशियां थी जो अपनों में, हिस्सों में बंट गई
कुछ पल बिताई यादें, धागों सी सट गई

आस कहीं दूर से, वह चिड़िया लौट आए
बो सकें कोई बीज, खुशियां लौटा जाए
डूबते सूरज को, रोज उगते देखा है
होश आया हो कहीं भी, खुशियों को लौटते देखा है