Sunday, September 02, 2018

नव युग की राह

मुक्त सा है सफर
जीवन में उठे कई भवर
टूटते सपनों के पल
अनेकों प्रयास हुए विफल
आओ सब विफलताओं से
जूझते हम चलें
नव युग की राह को
मोड़ते हम चलें


नव पंथ पर चलने की
हिम्मत जुटाई किसने है
अंधियारों में उजाले की
ज्योति जलाई किसने है
चलते हुए जमाने को, सबने ही कोसा
काल की गति को, सबने ही दोसा
कौन कहता हर पल 
ठोकरें बनाती मजबूत हैं
बिन कष्टों के जीवन का
क्या कोई वजूद है
पल भर दुख पर
अनंत खुशी क्यों ढले
नव युग की राह को
मोड़ते हम चलें

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