मोहक बड़ी तुम लगती हो
(वाणी को संबोधन)
हे! छिछोली चंचल प्रिये
मोहक बड़ी तुम लगती हो
अंदर से कुछ
बहार से कुछ
फिर शांत कैसे रहती हो
घमासान क्या होते नहीं
भीतर से तोड़ते नहीं
टूटे हुए टुकड़े भी तो
कातरता से चुभते हैं
फिर निज मन को कैसे
झुठला कर रखती हो
हे! छिछोली चंचल प्रिये
मोहक बड़ी तुम लगती हो
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