छोटे रोशनदानों से
चांद की रोशनी
अंधकार भरी कोठरी में
कुछ लोगों से छिपकर
कुछ वीरों से मिलने
चली आती थी
जहां पीने के नाम पर
एक मटका,
सोने के नाम पर
एक कंबल,
बड़े ही संहर्स पर मिले
जहां एक समय
क्रांतियों ने जन्म लिया
देश की नीतियां बनी
वहां समय समय पर
कुछ बहादुर लोग
खुशी खुशी आते
और सुनहरे चांद से
संदेशा बयां करते
वह चारदीवारी
आज भी वैसी ही है
फर्क इतना है
आज का चांद
उनसे बातें नहीं करता
कुछ छोटे चोर,लुटेरे,जेबकतरे
आज भी
वहां पहुंच जाते हैं
मगर जिनके लिए
असल में वह बने थे
वह देश छोड़कर भाग जाते हैं।
Yaswant singh.....You are a great writer
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