Friday, June 29, 2018

भूमि से छल

कोमल भूमि की बाँहों में 
शूलों से चुभते हैं वह दाग 
जो युद्ध समर में 
जल बहाव से बहाए गए 
जिस तरुण भूमि ने 
जाने कितने ही 
दर्द झेले हैं 
और अपने ही सपूतों का 
लहु संजोया है 
मगर उससे अधिक पीड़ा 
उसे उसके ही समर में 
 तब मिली जब 
उसमे उगाने वाला 
उसमे ही जीने वाला 
उसे अपनी मां समझने वाला
किसान  
कुछ लोगो द्वारा छला गया 
यह खाद रुपी दाग 
भूमि की उर्वरता पर प्रश्न थे 
पेटों पर मरहम थे 
जो उन शूलों से 
अधिक तेजी से चुभते हैं 
आज उसका सीना लाल है
और लोग कहते हैं 
सब प्रौद्योगिकी कमाल है 


Wednesday, June 20, 2018

मकड़ी के जाले

आज सालों बाद
उन मकड़ी के जालों में
कुछ फंस आया
वह जाले

गांव के बीचों बीच
एक पुराने घर के
दरवाजे पर लगे थे
शायद आज उन
मकड़ियों का अंदाजा भी सही था 
वह फंसने वाले कुछ
इंसानी प्रजाति के लोग थे
जो कुछ सालों  पहले
उस घर को ठुकरा गये थे
और आज उन्हें
शहर ने ठुकरा दिया 

Friday, June 15, 2018

दीया

रात की सुनहरी रौशनी में 
एक छत के नीचे 
दीया जलाए 
कुछ बच्चे 
किसी देश का 
भविष्य लिख रहे थे 

उस मिट्टी के दीपक के नीचे
भले ही अंधेरा था
मगर उसकी रोशनी में
सामने से बैठ
बड़ी तन्मयता से 
वह बच्चे पढ़ रहे थे
भले ही दीपक 
अंधेरे को
अपने अंदर ही 
समेटना चाहता था 
ताकि उन बच्चों का
ध्यान वहां न जाए
उसने भी सुना था 
बच्चे हर चीज को 
बड़ी जल्दी सीख जाते हैं 
और वह इन्तजार में था
 किसी तरह 
 जल्द ही 
रवि का राग पहुँच जाए  

Wednesday, June 13, 2018

अंधेरी कोठरी

छोटे रोशनदानों से
चांद की रोशनी
अंधकार भरी कोठरी में
कुछ लोगों से छिपकर
कुछ वीरों से मिलने
चली आती थी

जहां पीने के नाम पर
एक मटका,
सोने के नाम पर
एक कंबल,
बड़े ही संहर्स पर मिले 
जहां एक समय
क्रांतियों ने जन्म लिया
देश की नीतियां बनी
वहां समय समय पर
कुछ बहादुर लोग
खुशी खुशी आते
और सुनहरे चांद से
संदेशा बयां करते
वह चारदीवारी
आज भी वैसी ही है
फर्क इतना है
आज का चांद 
उनसे बातें नहीं करता
कुछ छोटे चोर,लुटेरे,जेबकतरे
आज भी
वहां पहुंच जाते हैं
मगर जिनके लिए
असल में वह बने थे
वह देश छोड़कर भाग जाते हैं।

कतरा : कागज का

वह कतरा
कागज का
कितने अश्रु रोता है
जिसको समेटने
हर व्यक्ति
समर्पित रहता है

स्वचलित समय की
कितनी भारी मांग है
जब रोटी का टुकड़ा भी
उसी के नाम पर
बिकता है
एक और रोता है
उसके अलावा
जिसकी अब बारी है
कागज का टुकड़ा बनने की
आदमी का सुख,
चैन और
ईमान बेचने की।


Saturday, June 09, 2018

फल वाला

मुख्य सड़क के किनारे
एक चौपहिया 
बड़ी शांत अवस्था में
प्रतीक्षा कर रहा था
वह लाखों,करोड़ों वाला नहीं
बल्कि फलों के
एक ठेले वाला

किसी की तड़पन बांधे
दुखों को संभाले
पानी छिडकता
फलों वाला था
उसके नीचे कुछ बेकार पड़े
ना बेचने योग्य
फलों को फेंका था
जिसको बड़ी देर से
एक सुस्त बच्चा
निहारता,देखे जाता
थोड़ी देर में चुप चाप 
वह वहां पर आया
गिरे फलों को उठाया
और चला गया


Friday, June 08, 2018

कलम

तलवार की धार में,
खून के कुछ छीटें
सूखे हुए
एक म्यान में कैद
हंसते है 
बड़ी नीर्लजता से
उस तीखी धार पर
जिसने उनको जन्म दिया
क्यूंकि उससे भी तेज,
धारदार,
असरदार चोट करने वाली
खुले आम घूमती है,
सस्ते में बिकती है,
और वह कलम
बड़ी ही शांत दिखती है।

Wednesday, June 06, 2018

वजह


कितना अच्छा है
एक एक करके
सभी प्रजातियां 
लुप्त हो रही हैं

वनस्पतियों की,
जानवरों की,
मानवता की,
वह भी केवल
एक के कारण
क्यों ना ऐसा हो
उस एक का ही
विनाश हो जाए 
और एक नया संसार
फिर से उभरे!

Tuesday, June 05, 2018

बाढ़


कल शाम की 
कहर बरपाती बाढ़
सब कुछ ले गई
जो समान उसने
कुछ पलों में ही
बहा दिए

मगर ना ले जा पाया
वह बेचैनी,
बिछड़ने की
वह खुशी,
मिलने की
और वह मानवता
जो उसके खिलाफ खड़ी होकर
मानव को बचा रही थी

Sunday, June 03, 2018

डाकिया


खाकी की वर्दी पहने 
हर रोज
एक डाकिया
हर घर में
मीलों का संदेश
जमाने की मुस्कान
अपनों का सहारा
कागज के टुकड़ों में
बांट जाता है

उनकी कीमत 
नहीं लगाई जा सकती
उस मीलों के सफर में
एक बंधन को
साईकिल से बांधता
हर रोज दस्तक देता है
और एक बात
जो नजरअंदाज हुई
जरा खुदा से पूछो
क्या कभी उसके लिए भी
कोई खत
 आया होगा क्या