Sunday, December 31, 2017

नई डगर

जो पाने की ख्वाहिश थी
उस पथ पर चलते जाना तुम
हो अगर अंधेरा बहुत
नया सवेरा बन जाना तुम

डगर अगर मुश्किल हो बहुत
आसान बनाते जाना तुम
राह भटक गए हो अगर
एक नई राह बनाते जाना तुम

कांटे मिले अगर राहों में
कुछ कम करते जाना तुम
मुश्किल लगे यह भी अगर
कुछ फूल ही बोते जाना तुम


हार जीत तो मोड़ हैं राह के
सजग कदम बढ़ाना तुम
आंधियां अगर कदम रोकेंगी
उसको चीरकर जाना तुम

साथी मिले खुशकिस्मत अगर
नए अनुभव लेते जाना तुम
इंसान ना मिले भले अगर
प्यार बांटते जाना तुम

साथी अगर ना मिले राहों में
अकेले चलते जाना तुम
फिर भी मुश्किल डगर अगर हो
हमे याद कर लेना तुम

अंधियारों में दिए जलाना
खुशियां बांटते जाना तुम
भटकों को राहें दिखाना
नई किरण सी बन जाना तुम

खुशियां मिलते रहेंगी बहुत
कदम बड़ाए जाना तुम
सफलता निश्चित कदम चूमेगी
होंसला बनाए रखना तुम

तुम भी यहां के राही हो
जमाने को जरूर बतलाना तुम
सुंदर,सुशोभित रहे हमेशा 
ऐसा इतिहास लिख जाना तुम

Thursday, December 28, 2017

पलायन २

जन्मभूमि आज भी
पलकें बिछाए बैठी है
अपनी संतानों के
इंतजार में
जो बरसों पहले
अपनी जन्मभूमि को
छोड़ चुके थे
वह उनके लिए मात्र
एक जगह थी
मगर


जन्मभूमि के लिए
वह हमेशा
उसकी संतान थे
जो उनको हमेशा
अपने आंगन में
हंसता खेलता देखना चाहती थी
मगर वह भी न जाने
किस बंधन में बंधे थे
जो इतनी समस्या के बावजूद भी
वापस आने को
तैयार न थे
एक वही दिन था
जब जन्मभूमि की आंखे 
नम थी
उसके बाद,उसको भी
मुर्दों की भांति
आदत पड़ चुकी थी
हमेशा अकेले रहने की

Wednesday, December 27, 2017

The Supreme

Astonishing
an astonishing question
that arises 
at least once
in mind of every person
that 
who created us
the God........,ohhh..!


But more than this
much surprising
is that
we created God
very confusing
trying to find truth
But 
the creation is by
hope,beliefs,trust
or any other reason
which keep us happy
keep us calm
cools our mind
that power of faith
keep the uneasy struggle
very easy
these all govern us
which remain till the end
the faith 
which never dies
and remain us humane.....?

तांडव

धड़कने खौफ खाकर रुक जाती
फिर भी फौजें तेरी वापस न आती
शायद मुसर्रफ हारने तेरी फौजें आती
सदा हारकर ही वीरों से फौजें हैं तेरी जाती


यह कृति नहीं दीप्त स्वप्न है बोलता
मुझे तेरा भविष्य दिखता है सूली पर झूलता
क्यों तू उत्तरोत्तर सीमा है लांघता
तांडव को  क्यों अब तू पुकारता



लाश्य और तांडव दोनों हमने भी किए हैं
शायद तू यह सत्य नहीं जानता है
अभी तू भारतवासियों को नहीं पहचानता है
केवल सीमा लांघना ही तू जानता है


अपना विनास अपने मुंह पुकारता
क्यों अपने काल से पंगा ले डालता
इसका परीपाक क्या तू है जानता
तांडव के लिए हमें तू पुकारता

                            - विजय बूढ़लाकोटी

Friday, December 22, 2017

Unborn love

Again today 
that feeling
came in my heart
that was alike to
an older one
but this time
It has created the realisation 
of those 
who always loving to me
but I ignored
only because of
that negative thought
I have ever listened
only your own betrays
but I forget
they are only in this whole universe
who can understand me
who are always with me
the time has passed
and I too going to be passed
from here
I always miss them
                      and miss the feeling
                                  of love
                        which never come
                           An unborn love

Thursday, December 14, 2017

बिछड़ी यादें

इन भटकती सी राहों में
कुछ झिलमिल से चेहरे 
याद आते हैं
जो शायद कभी
हमारे जीवन का 
हिस्सा रहे हों
मगर उनसे जुड़ी यादें 
न झिलमिलाती हैं
न डगमगाती हैं
वह बस हमारे जेहन में
एक सुनहरे पल के रूप में
समाई होती हैं
जो कभी हंसा देती हैं
और कभी रुला देती हैं
याद कराने की कोशिश करती हैं
उन कुछ और यादों को
जो अब याद नहीं आ पाती हैं
शायद जिनकी उम्र थोड़ा कम थी
जो अभी भी
सभी के दिलों में हैं
मगर थोड़ा जोर देने की जरूरत है
किसी को लगता है
यादों को याद करने का वक्त नहीं
किसी को लगता है
जिंदगी बहुत तेज है
मगर हर एक के जीवन में 
वह लम्हा जरूर आता है
जब हमको अकेले में मुस्कुराता देखकर
अकेले बतलाता देखकर
और लोग पूछ बैठते हैं
कि कहां खोया है
लेकिन इन यादों में
बार बार डूबने का मन करता है
जो जीवन के अंतिम पलों में भी
थोड़ा और जीने की
वजह बनने की कोशिश करती हैं
और यही यादें 
हर किसी के जीवन की खुशी हैं
जो कभी अकेला नहीं छोड़ती
क्योंकि जिंदगी भर 
चेहरों पर भरोसा कर
उस समय तक
भरोसे से भी भरोसा उठ चुका होता है
जिस समय
अंतिम दिनों का चलना 
शुरू हो चुका होता है
मगर थोड़ा और जीने की आश
अभी बाकी होती है 
और हमें जिंदा रखने के लिए
ये यादे काफी होती हैं।


Tuesday, December 12, 2017

छोटा बच्चा कोरा कागद होता है

छोटा बच्चा कोरा कागद होता है
जैसा चाहो लिखा जा सकता है

सभ्य चाहो लिखा जा सकता है
असभ्य चाहो लिखा जा सकता है


सपूत चाहो मिल सकता है
कपूत चाहो मिल सकता है
सर्वोत्तम चाहो मिल सकता है

छोटा बच्चा कोरा कागद होता है
जैसा चाहो लिखा जा सकता है

लिखने वाला भी कातर हो
ऐसा भी हो सकता है
पर वह भी साहस लिखे 
ऐसा भी हो सकता है
सर्वोत्तम चाहो मिल सकता है
तो क्यों नहीं अब इंसान है जागता
ऐसा भी हो सकता है

                     -   विजय बुधलाकोटी

Wednesday, November 22, 2017

अफ़वाह

कल शाम एक अफवाह फैली
उस दवानल के आग सी
जैसे कोई तूफा आ चला हो
या आसमान से बिजली आ गिरी हो
सभी को इसकी भनक लगी
मगर आवाज ना सुनाई दी
उसी को ढूंढते हुए सब
चौराहे में बनी मूर्ति के पास
चौड़ी निगाह और बड़े कान लिए
उसी पुरानी जगह आ  पहुंचे



और देखते ही देखते
एक भीड़ जमा हो गई
कोई सकते में ही आया 

Sunday, November 12, 2017

हिस्सा एक खेल का

आओ तुम्हें किस्सा बताऊं
उस समय के कांड का
जो खुरापाती रहा होगा
रचनाकार इस ब्रह्मांड का
जब धरा देख आकाश को
सूना सूना कुछ लगा होगा
तभी उसने भी खेल नया
खेलने को सोचा होगा















आओ धारा तुम सहयोग करो
चारों तरफ फैले इस जल का
जिससे मिलकर खड़ा हो सके
एक शानदार नमूना कल का
तभी पवन,अनल ने मिलकर
आकाश का सहयोग किया होगा

Monday, October 30, 2017

पलायन १

जन्मभूमि के लिए
दुखद,अत्यधिक दुखद
दिन था वह
जब उसकी ही संतानें
उसको छोड़कर जा रही थी
शायद इस उम्मीद में


कि कोई बेहतर
और बेहतर
कर्मभूमि मिले
मगर वह जहां का रहे थे
वहां इंसान जैसा कुछ न था
रहना ऐसा जैसे
माचिस के डिब्बे में
तीलियां समेटी हो
और बस
एक चिंगारी काफी है
उनको तबाह करने के लिए

Tuesday, October 03, 2017

पेट को दोष

जिंदगी के इस धूमिल होते सफर में
एक शाम
खयाल आता है 
उन लोगो का
जो सूरज डूबने के बाद भी
नहीं थमते हैं
खयाल कम और सवाल ज्यादा
न जाने किससे
जो इस प्रशासन को चला रहा है
या फिर उससे
जो इस दुनिया को
चला रहा है
उन जिंदगियों के लिए
जो केवल पेट के खातिर नहीं थमती
बड़ी ही नश्वर चीज है यह पेट
जो केवल
अपने खातिर
किसी की जिंदगी तक नहीं बख्शता
सारी मार काट
केवल उसी के खातिर
सोचा भी नहीं  जा सकता
कोई इतना निर्मम कैसे हो सकता है
क्या इतनी सी दया
या थोड़ी करुणा
इसको भी दे दी होती
तो शायद
न ही आज इतनी बहसें होती
न इतने दोष मडे जाते
और न ही न्याय की जरूरत होती
और न ही इतनी
बेरहम मौते होती 

Thursday, September 21, 2017

वह किसान

बादल भरे गुस्से में देखो
बिजलियों का फरमान आया है
कहर आएगा एक बार फिर
हवाओं का पैगाम आया है

लगती नहीं ये व्यर्थ कहीं भी
गर्जना इन बादलों की
शांत चितवन बैठे थे वो
अब भड़की है ज्वाला सी













कौन है जा भिड़ने वाला
शांत पड़े इन शोलों से
काम हुआ लगता है शायद
मानव के इन बोलों से

 लगता है उजालों को
वजह स्वाधीन रहा होगा  
किस्मत जिसकी देख खुदा भी
बादलों से जा बोला होगा

ताक रहा महीनों से वो
आसमान को बारम बार
उसके लिए सुखदाई होगा
बारिश का पहला त्यौहार

कितना सौन्दर्य भरा है उसमें
ऊपर कुर्ता , नीचे धोती
लगता कहीं चमक रही है
एक श्वेत दीप सी ज्योति

बीवी बच्चे हैं उसके भी
दीदार कर रहे राह का उसकी
बाहर झांक रही हड्डियां उनकी
पलकें बिछाए घर लौटने की

कितनी भयावह रात वह होगी
क्या खाली हाथ जाएगा घर को
प्रताड़ना की इस हद को
क्या यूं ही सह जाएगा वो

क्या जवाब देगा घर में
सांत्वना सरकार से लाया हूं
दिन भर इंतजार कर
केवल दीदार में पाया हूं

त्रिस्कृत होता पल पल वह
लगा होगा मंदिरों में झांकने
अभिमान भरा आंखो में जिसकी
गुहार लगाता खुदा के सामने

निश्छल , निर्भय बचपन से जो
कसौटी देने आया होगा
उस दिन तो जमाना भी
फुट फुटकर रोया होगा

Saturday, September 16, 2017

ऊपर वाले के नाम

वह रोज.....
शीश झुकाता है
उन दराख्तों पर
जो शायद केवल
किस्मत वालों की सुनते हैं
दरअसल
उन सीढ़ीयों में भी
कुछ बदनसीब ही बैठते हैं
क्योंकि
दिन तो उनके हैं
जिनके हाथ से केवल
कुछ सिक्के छूट जाते हैं

अरे!
तुम क्या सोचते हो
थोड़ा सही जाओ
उनका कुछ छूटता तो है
उन हाथों पर
जो केवल 
उन दराख्तों पर
फेंक आते हैं
उनका क्या?

Friday, September 15, 2017

वो गांव बहुत याद आता है

चांदनी सी वो रात भुलाकार
सपनों की यादों में खोकर
सुबह सवेरे जागू तो
वो गांव बहुत याद आता है

शहरो की ये छठा तो देखो
निर्मल बहुत ही लगती है
अगर झांक के देखो अंदर
वो गांव बहुत याद आता है


भरी दोपहरी के शोर में वैसे
लगता कुछ भुला हूं जैसे
अगर पेड़ छाव् में पाऊ तो
वो गांव बहुत याद आता है

दो पैसों की शिद्दत में
जन्नत से जुदा हुआ था मैं
सम्मान पाने को शायद उनका
जिनसे बहुत जुड़ा था मैं
झूठी कस्मे वादे निभाकर
शहर को क्यों तू जाता है
वो गांव बहुत याद आता है

Tuesday, September 12, 2017

ये कविताएं

अच्छा है
अच्छा है कि तुमने कविता लिखी
बहुत अच्छा है कि तुमने कविता लिखी
न जाने कितने
जीवनों को संवारा
कितनों को राह दिखाई
कितनों में जीने की अलख जगाई

आजादी से लेकर आज तक
दंगो से लेकर राज तक
आतंक से लेकर मातम तक
उन मनों से लेकर आप तक
और आप से लेकर आपके दिलों तक
कितना योगदान है इन कविताओं का

बच्चों के होठों में मुस्कान आ जाती
जब बंदर मामा की शादी हो जाती
चंदा मामा दूर से आ जाते
मास्टर जी जब पहाड़े पड़ाते
छोटे बच्चे घरों को जाते
दादा दादी जब कहानियां सुनाते
और खुशहाली के दिन यू ही चले जाते

युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत बन जाती
जब अर्जुन कृष्ण का संवाद है आता
श्रीराम का स्वयंवर हो जाता
नटखट कान्हा गोपियों संग खेलते
इन सब के बीच ठहाके लग जाते

Sunday, September 03, 2017

कहते हैं कि हम इंसान हैं

कहते हैं कि हम इंसान हैं
इंसान के अंदर एक मानव है
जो अनल,पवन ,नीर,आकाश और पृथिवी से बना है
और इसके भी अंदर
इससे भी बड़ा
इससे विराट
पंचतत्वो को समाहे हूए
एक आत्मा है
जो सूक्ष्म है
जो अनंत है
जो सास्वत है
जो सदैव है
जो निराकार है
और इन सभी को समाहे हुए
बनता एक इंसान है


कहते हैं कि हम इंसान हैं
इस इंसान के अंदर एक दानव है
जो हमारा काल है
जो अहम,स्वार्थ,ईर्ष्या,लोभ से बना है
और इसके भी अंदर
इससे भी बुरा
इन सभी को समेटे हुए
एक राक्षस है
जो इन भावो को त्यागना नहीं चाहता
जो इनको जानकर भी
एक अनजान है
और इनको भी समाहे हुए
बनता एक इंसान है

Saturday, August 19, 2017

असमंजस

एक दिन सहसा
इस बोझिल
जिंदगी से उबकर
न जाने उसके मन मे क्या खटका
असमंजस में
वह कूद गया


गांव किनारे कुँए में
नहीं,
अरे नहीं
वह बच गया
कुवाँ सुखा था
और शायद
पहली बार सुना
कोई बच गया
सूखा पड़ने से.....?

Thursday, August 17, 2017

छोटे बच्चे स्कूल चले

उछल उछल कर ,फुदक फुदक कर
भोले भाले स्कूल चले
नाचते गाते ,मस्ती करते
छोटे बच्चे स्कूल चले












नन्हे मुन्हे, भोले भाले
बड़े बड़े अरमान हैं पाले
रोज सवेरे होले होले
सबके प्यारे स्कूल चले

कदम कदम पर ,मोड़ मोड़ पर
सब जन को सम्मान दिए
हस्ते हस्ते ,जाते जाते
नयी उमंग उल्लास लिए
सबके न्यारे , स्कूल चले

फूलों के झुरमुट हो जैसे
मनमोहक सी छठा बिखेरे
सागर के मोती हो जैसे
नयी चमक मुस्कान लिए
आँखों के तारे स्कूल चले
छोटे बच्चे स्कूल चले