
ऊंचाई से अगणित रफ्तार
पर्वतों को चीर पार
स्वयं अपनी राह बनाते
मैदानों में नदियां आती
या फिर पर्वत रोकते राहें
चंचलता पर अंकुश लगाएं
भूली भटकी धारा को
जीवन का जो मार्ग दिखाए
जैसे भटकते राही को
यदि राह तूने नहीं दिखाई
फिर क्या अधिकार रह जाता है
बुरा भला चिल्लाने का
अंधेरों में दोष गिनाने का
संसार की थू करने का
वह बने आतंकी, चोर, हत्यारा
या फिर राजनीति का प्यारा
दिया जलाने का अवसर तो था
अंधेरे मिटाने का अवसर जो...