The words of deep emotion are here.

Sunday, September 23, 2018

राह दिखाएं

ऊंचाई से अगणित रफ्तार
पर्वतों को चीर पार
स्वयं अपनी राह बनाते
मैदानों में नदियां आती


या फिर पर्वत रोकते राहें
चंचलता पर अंकुश लगाएं
भूली भटकी धारा को
जीवन का जो मार्ग दिखाए
जैसे भटकते राही को
यदि राह तूने नहीं दिखाई
फिर क्या अधिकार रह जाता है



बुरा भला चिल्लाने का
अंधेरों में दोष गिनाने का
संसार की थू करने का
वह बने आतंकी, चोर, हत्यारा
या फिर राजनीति का प्यारा
दिया जलाने का अवसर तो था
अंधेरे मिटाने का अवसर जो था
दोषों पर चिल्लाने से पहले
दोष ना होने का मौका जो था
उससे बड़े दोषी तुम हो
और पाप के भागी तुम हो
फिर क्या रह जाता करने को
संसार में सिवाय मरने को
शरीर केवल आता जाता
अमर जीवन तो है विचारों का


ये राहें, तुझसे होकर जाती हैं
और अंत में वापस भी
तुझ पर ही आती हैं
फिर क्यों ना हम भी दिया जलाएं
भटकों को राह दिखाएं
या फिर केवल दोष गिनाएं
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