The words of deep emotion are here.

पंखे में धूल

Poetry comes from the highest happiness or the deepest sorrow. - A.P.J.ABDUL KALAM

अंधेरी कोठरी

Poetry is when an emotion has found it's thought and the thought has foud words. - ROBERT FROST

लोरी

The poet is a liar whoalways speaks truth. - JEAN COCTEAU

डाकिया

Poetry should be great and unobtrusive, a thing which enters into ones soul, and does not startle it or amaze it with itself, but with its subject. - JHON KEATS

कतरा : कागज का

And when all the wars are over, a beautiful butterfly will still be beautiful. - RUSKIN BOND

Thursday, September 21, 2017

वह किसान

बादल भरे गुस्से में देखो
बिजलियों का फरमान आया है
कहर आएगा एक बार फिर
हवाओं का पैगाम आया है

लगती नहीं ये व्यर्थ कहीं भी
गर्जना इन बादलों की
शांत चितवन बैठे थे वो
अब भड़की है ज्वाला सी













कौन है जा भिड़ने वाला
शांत पड़े इन शोलों से
काम हुआ लगता है शायद
मानव के इन बोलों से

 लगता है उजालों को
वजह स्वाधीन रहा होगा  
किस्मत जिसकी देख खुदा भी
बादलों से जा बोला होगा

ताक रहा महीनों से वो
आसमान को बारम बार
उसके लिए सुखदाई होगा
बारिश का पहला त्यौहार

कितना सौन्दर्य भरा है उसमें
ऊपर कुर्ता , नीचे धोती
लगता कहीं चमक रही है
एक श्वेत दीप सी ज्योति

बीवी बच्चे हैं उसके भी
दीदार कर रहे राह का उसकी
बाहर झांक रही हड्डियां उनकी
पलकें बिछाए घर लौटने की

कितनी भयावह रात वह होगी
क्या खाली हाथ जाएगा घर को
प्रताड़ना की इस हद को
क्या यूं ही सह जाएगा वो

क्या जवाब देगा घर में
सांत्वना सरकार से लाया हूं
दिन भर इंतजार कर
केवल दीदार में पाया हूं

त्रिस्कृत होता पल पल वह
लगा होगा मंदिरों में झांकने
अभिमान भरा आंखो में जिसकी
गुहार लगाता खुदा के सामने

निश्छल , निर्भय बचपन से जो
कसौटी देने आया होगा
उस दिन तो जमाना भी
फुट फुटकर रोया होगा
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Saturday, September 16, 2017

ऊपर वाले के नाम

वह रोज.....
शीश झुकाता है
उन दराख्तों पर
जो शायद केवल
किस्मत वालों की सुनते हैं
दरअसल
उन सीढ़ीयों में भी
कुछ बदनसीब ही बैठते हैं
क्योंकि
दिन तो उनके हैं
जिनके हाथ से केवल
कुछ सिक्के छूट जाते हैं

अरे!
तुम क्या सोचते हो
थोड़ा सही जाओ
उनका कुछ छूटता तो है
उन हाथों पर
जो केवल 
उन दराख्तों पर
फेंक आते हैं
उनका क्या?
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Friday, September 15, 2017

वो गांव बहुत याद आता है

चांदनी सी वो रात भुलाकार
सपनों की यादों में खोकर
सुबह सवेरे जागू तो
वो गांव बहुत याद आता है

शहरो की ये छठा तो देखो
निर्मल बहुत ही लगती है
अगर झांक के देखो अंदर
वो गांव बहुत याद आता है


भरी दोपहरी के शोर में वैसे
लगता कुछ भुला हूं जैसे
अगर पेड़ छाव् में पाऊ तो
वो गांव बहुत याद आता है

दो पैसों की शिद्दत में
जन्नत से जुदा हुआ था मैं
सम्मान पाने को शायद उनका
जिनसे बहुत जुड़ा था मैं
झूठी कस्मे वादे निभाकर
शहर को क्यों तू जाता है
वो गांव बहुत याद आता है
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Tuesday, September 12, 2017

ये कविताएं

अच्छा है
अच्छा है कि तुमने कविता लिखी
बहुत अच्छा है कि तुमने कविता लिखी
न जाने कितने
जीवनों को संवारा
कितनों को राह दिखाई
कितनों में जीने की अलख जगाई

आजादी से लेकर आज तक
दंगो से लेकर राज तक
आतंक से लेकर मातम तक
उन मनों से लेकर आप तक
और आप से लेकर आपके दिलों तक
कितना योगदान है इन कविताओं का

बच्चों के होठों में मुस्कान आ जाती
जब बंदर मामा की शादी हो जाती
चंदा मामा दूर से आ जाते
मास्टर जी जब पहाड़े पड़ाते
छोटे बच्चे घरों को जाते
दादा दादी जब कहानियां सुनाते
और खुशहाली के दिन यू ही चले जाते

युवाओं के प्रेरणा स्त्रोत बन जाती
जब अर्जुन कृष्ण का संवाद है आता
श्रीराम का स्वयंवर हो जाता
नटखट कान्हा गोपियों संग खेलते
इन सब के बीच ठहाके लग जाते

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Sunday, September 03, 2017

कहते हैं कि हम इंसान हैं

कहते हैं कि हम इंसान हैं
इंसान के अंदर एक मानव है
जो अनल,पवन ,नीर,आकाश और पृथिवी से बना है
और इसके भी अंदर
इससे भी बड़ा
इससे विराट
पंचतत्वो को समाहे हूए
एक आत्मा है
जो सूक्ष्म है
जो अनंत है
जो सास्वत है
जो सदैव है
जो निराकार है
और इन सभी को समाहे हुए
बनता एक इंसान है


कहते हैं कि हम इंसान हैं
इस इंसान के अंदर एक दानव है
जो हमारा काल है
जो अहम,स्वार्थ,ईर्ष्या,लोभ से बना है
और इसके भी अंदर
इससे भी बुरा
इन सभी को समेटे हुए
एक राक्षस है
जो इन भावो को त्यागना नहीं चाहता
जो इनको जानकर भी
एक अनजान है
और इनको भी समाहे हुए
बनता एक इंसान है
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