The words of deep emotion are here.

पंखे में धूल

Poetry comes from the highest happiness or the deepest sorrow. - A.P.J.ABDUL KALAM

अंधेरी कोठरी

Poetry is when an emotion has found it's thought and the thought has foud words. - ROBERT FROST

लोरी

The poet is a liar whoalways speaks truth. - JEAN COCTEAU

डाकिया

Poetry should be great and unobtrusive, a thing which enters into ones soul, and does not startle it or amaze it with itself, but with its subject. - JHON KEATS

कतरा : कागज का

And when all the wars are over, a beautiful butterfly will still be beautiful. - RUSKIN BOND

Monday, April 30, 2018

टूटता तारा

जाने कितने टिमटिमाते तारे
यूं ही टूट जाते हैं
उस ऊंचे आकाश में

जिनको देख आज भी
बचपन की तरह
दो अंगुल मिला लेता हूं
आज भी कुछ सपने,
कुछ ख्वाहिशें
मांग लेता हूं
यह सब
मेरी मां ने मुझे सिखाया 
और मौत के बाद 
मेरी मां भी
आसमां का एक तारा बनी
जो आज भी खुद टूटकर
मेरे सपने पूरे करती है
और आज भी
मेरी मां के एहसान 
मुझ पर भारी हैं
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Sunday, April 29, 2018

लोरी

मां,सुनो ना
यह लोरियां क्या होती हैं?
इस नई सदी का 
एक नया सवाल

जिसके जवाब में गूगल
कुछ सुंदर से
चित्रण दिखा देता,
या कभी कुछ गाने
जो किसी नए भाव को
जोड़ने में असक्षम है
मगर विरासत तो
मां से आती है,
पिता से आती है,
घर से आती है,
समाज से आती है,
फिर इसको ना जानने में
नई पीढ़ी का क्या दोष 
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Friday, April 27, 2018

मनुष्य प्रगति

उन शमशानो में
अब लाशें नहीं आती
और कब्रिस्तानों में
न जाने कब से

नई कब्र भी नहीं बनी
दोनों रूठे भाई बहन से
अब कोई नहीं मिलता
सुनने में आया था
जमाना बदल गया
अब घरों के अंदर ही
शमशान मौजूद हैं
बीच सड़कों में ही
कब्रस्तान खुदने लगते हैं
शायद मनुष्य प्रगति
असीम है,अकल्पनीय है
यहां तक कि
खुदा भी नहीं सोच पाता

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जीवन की आस

वह बूढ़ा 
बरगद का पेड़


गांव के बीच में
किसी मीनार की भांति
अंबर की ऊंचाई से
निहारता चारदीवारी को
मूर्छित पड़े शमशनो को
मुर्दा कब्रिस्तानों को
किसी तरह
कोई मुझे काट
एक छोटा सा मॉल बना दे
ताकि कम से कम
खुशी नहीं
जीवन लौट तो आए 
उस गांव में
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Tuesday, April 03, 2018

एक पत्थर

कहा ना मान गया
हां हूं मैं पत्थर
यही थी ना जिद तुम्हारी
सही तो कहते हो
हां हूं मैं पत्थर
माना कि थोड़ा ठोस हूं
मौसम का कोई असर नहीं पड़ता
रोज की ठोकरों की फ़िक्र नहीं करता
हां हूं ना,वही पत्थर


जिसको भोर से पहले
तुमने तालाब में फेंका था
उस 'टप्प' की आवाज ने
बस तुम्हारा ही दिल जीता था
वही पत्थर जिसको पैरों से खेलते
तुम मीलों चल जाते थे
और अपने इस लंबे सफर का
हमसफ़र बनाते थे
वही पत्थर जिसने घर के कांच से
माना थोड़ा बैर की थी
मगर चमकदार(हीरा) होने पर
बड़ी रखवाली में सैर की थी
वही पत्थर जिनको तुम मिलाकर
सड़कों के नीचे बिछाते थे
या कभी उसको सिर पर रख
दो वक़्त की रोटी कमाते थे
जिसको बुनियाद  सांचा देकर
तुमने यह घर जोड़ा था
और शिल्प की प्रतिभा ने
जग का ध्यान खींच था
हां माना,माना कि मैं पत्थर हूं
सीमाओं में सैनिकों को आड़ देता हूं
माना कभी दूसरों के फेंकने पर
खून से भी रंग जाता हूं
नदियों के बहाव में बहकर
किनारों में जोर से पटककर
एक नया आकार तुम ही दोगे
थोड़ा लाल,पीला रंगकर
श्रद्धा से तुम ही पुजेगो
फिर कहां जाता है पत्थर
तुम्हारे उस दिमाग से
जो कल दिखाई तुम्हें देता
वह आज मेरे दिल में है
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