The words of deep emotion are here.

पंखे में धूल

Poetry comes from the highest happiness or the deepest sorrow. - A.P.J.ABDUL KALAM

अंधेरी कोठरी

Poetry is when an emotion has found it's thought and the thought has foud words. - ROBERT FROST

लोरी

The poet is a liar whoalways speaks truth. - JEAN COCTEAU

डाकिया

Poetry should be great and unobtrusive, a thing which enters into ones soul, and does not startle it or amaze it with itself, but with its subject. - JHON KEATS

कतरा : कागज का

And when all the wars are over, a beautiful butterfly will still be beautiful. - RUSKIN BOND

Friday, December 28, 2018

अनजान रास्ते

किस्सा-१

देखो कैसे
बिछड़े, भटके
वह अनजाने, रास्ते
कैसे मिल जाते हैं
कौन जाने कहां शुरू
जाने कैसा सफर किया
मगर एक दूजे को पाते ही
देखो कैसे
चीनी और पानी के जैसे
घुलमिलकर एक साथ हो जाते
वह अनजान, रास्ते

किस्सा-२

उस बिंदु तक
एक साथ ही आए
मानो जैसे एक ही जीवन
एक ही आत्मा
साथ खेलना
खाना साथ
सोना और जागना भी साथ
फिर उस बिंदु पर आकर
जड़ और तने हों जैसे
बिछुड़ गए
जैसे कभी मिले ही ना हो
वह अनजान, रास्ते

किस्सा-३

उस एक बिंदु पर,
आकर कुछ मिलते
आकर कुछ बिछड़ते
फिर मिलने का सुख
बिछड़ने का दुख
हमारे मन में क्यों समाता
यह जीवन है,
यहां कुछ मिलेंगे, कुछ बिछड़ेंगे
और फिर कुछ मिलेंगे
यही जीवन को
उल्लास बनाते
हमारे जीवन के
अनजान रास्ते

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Sunday, December 16, 2018

क्या तुम्हें पढ़ना नहीं आता

कुछ निशान बाकी हैं
कागजों में,
कलम के
अरे नहीं, स्याही के
जो लिखे गए थे
पढ़ने के लिए, 
जानने के लिए,
समझने के लिए
उन बातों को
जो उन शब्दों में हैं
शब्दों के बीच में हैं
मगर क्यों, शब्द
केवल अर्थ तक रह गए
क्या तुम्हें पढ़ना नहीं आता 

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Friday, November 09, 2018

दो चिड़ियां

पेड़ से निकली 
दो डालें 
उन दो डालों में बैठी
दो चिड़ियां
आपस में बातें करती
कल या तो यह 
पेड़ कट जाएगा या
जंगल में आग लग जाएगी
यदि मैं जली तो
तुम मुझे खा लेना
और यदि तुम जले तो
मैं तुम्हें खा लूंगी
तभी वहां एक शिकारी आया
और दोनों को मारकर
अपने साथ ले गया

तब भी जीवन
न जाने क्यों
यूं ही गुजर जाता है
बेमतलब की बातों में


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Tuesday, October 30, 2018

कवि

देखो कलम यह, टूट चुकी है
स्याही साथ में, सूख चुकी है
बिना कलम और स्याही के,
कवि बेचारा क्या करेगा
नाखूनों से कलम बनाकर,
खून की स्याही भरेगा

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Thursday, October 25, 2018

आंखो की रोशनी

उन आंखों के लिए
कितना सुखद होगा
वह क्षण
जब सालों बाद
मरू भूमि में
हलचल शुरू हुई
तेज हवाएं चली,
फिर से बादल घिरे, और 
बारिश हुई
और एक बार फिर से
जीवन का संचार हुआ 
जैसे उन आंखों को
फिर से
रोशनी मिल गई हो
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Sunday, September 23, 2018

राह दिखाएं

ऊंचाई से अगणित रफ्तार
पर्वतों को चीर पार
स्वयं अपनी राह बनाते
मैदानों में नदियां आती


या फिर पर्वत रोकते राहें
चंचलता पर अंकुश लगाएं
भूली भटकी धारा को
जीवन का जो मार्ग दिखाए
जैसे भटकते राही को
यदि राह तूने नहीं दिखाई
फिर क्या अधिकार रह जाता है



बुरा भला चिल्लाने का
अंधेरों में दोष गिनाने का
संसार की थू करने का
वह बने आतंकी, चोर, हत्यारा
या फिर राजनीति का प्यारा
दिया जलाने का अवसर तो था
अंधेरे मिटाने का अवसर जो था
दोषों पर चिल्लाने से पहले
दोष ना होने का मौका जो था
उससे बड़े दोषी तुम हो
और पाप के भागी तुम हो
फिर क्या रह जाता करने को
संसार में सिवाय मरने को
शरीर केवल आता जाता
अमर जीवन तो है विचारों का


ये राहें, तुझसे होकर जाती हैं
और अंत में वापस भी
तुझ पर ही आती हैं
फिर क्यों ना हम भी दिया जलाएं
भटकों को राह दिखाएं
या फिर केवल दोष गिनाएं
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Friday, September 21, 2018

किसान

धोती पहने, कपड़ा बांधे
नंगे पैर निकलता किसान
तड़पती धूप, कड़कती सर्दी
खेतो में रोज दिखता किसान


देश बंद हो, मजदूर दिवस
हड़तालें या फिर रविवार
सत्य मानों या ठुकरा दो
जीवन एक संहर्ष किसान
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Friday, September 14, 2018

मोहक बड़ी तुम लगती हो

(वाणी को संबोधन)
हे! छिछोली चंचल प्रिये
मोहक बड़ी तुम लगती हो
अंदर से कुछ 
बहार से कुछ
फिर शांत कैसे रहती हो

घमासान क्या होते नहीं
भीतर से तोड़ते नहीं
टूटे हुए टुकड़े भी तो
कातरता से चुभते हैं
फिर निज मन को कैसे 
झुठला कर रखती हो
हे! छिछोली चंचल प्रिये
मोहक बड़ी तुम लगती हो
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Sunday, September 02, 2018

नव युग की राह

मुक्त सा है सफर
जीवन में उठे कई भवर
टूटते सपनों के पल
अनेकों प्रयास हुए विफल
आओ सब विफलताओं से
जूझते हम चलें
नव युग की राह को
मोड़ते हम चलें


नव पंथ पर चलने की
हिम्मत जुटाई किसने है
अंधियारों में उजाले की
ज्योति जलाई किसने है
चलते हुए जमाने को, सबने ही कोसा
काल की गति को, सबने ही दोसा
कौन कहता हर पल 
ठोकरें बनाती मजबूत हैं
बिन कष्टों के जीवन का
क्या कोई वजूद है
पल भर दुख पर
अनंत खुशी क्यों ढले
नव युग की राह को
मोड़ते हम चलें
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Saturday, August 25, 2018

पलायन ३

यह तबाही
उनकी नहीं
जन्मभूमि की अधिक थी
जो उनको
अपनी गोद में
हंसते खेलते देखना चाहती थी
मगर वहां
उनके दफन होने को
दो गज जमीन भी नसीब न थी
और शायद
यह उनके ही कर्म होंगे
क्यूंकि आज
दोनों जगह सन्नाटा पसरा है।
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Thursday, August 16, 2018

इशारे

घर के किसी कोने में
अखबारों का ढेर
देख है कभी
सूना है कभी उन आवाज़ों को
उन बातों को
जो वह आपस में करते हैं
जिन बातों से वह झगड़ते हैं

मत करना कोशिश
कभी उनको सुनने की
गलत समझ बैठेंगे तुम्हें
चाहे खुद जल जाएंगे 
मगर ख़ाक कर देंगे तुम्हें
ऐसा ही फल होता है
दूसरों की बातें
चुपके से सुनने का
यहां की बात वहां कर
नज़रों में अच्छा बनने का
क्यों न अखबारों को
कुछ काम दिया जाए
कम से कम अफवाहों को
उनके कानों से बचाया जाए 
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Wednesday, August 08, 2018

खुशी के पल

देखा है कभी चश्में को, नाक से लिपटते हुए
देखा है कभी बालियों को, कान से चिपकते हुए
जैसे गले में टाई और, हाथ में घड़ी लिपट जाती है
ऐसे ही बचपन तुझसे, जिंदगी लिपटना चाहती है
बस छोटे से कद तक, सिमटना चाहती है
खुशियों के दामन में, खोना चाहती है
जी फाड़कर नादानों सा, हंसना चाहती है
भीड़ से कहीं दूर ये जिंदगी, बचपन चाहती है

गिरे उठे जख्म लगे
उम्र की ठोकर पड़े
घाव हुए लालिमा छाई
बचपन तेरी याद आई

होश आया नज़रें अब, कमजोर हो चुकी हैं
फिदाओं की बहारें, कहीं खो चुकी हैं
खुशियां थी जो अपनों में, हिस्सों में बंट गई
कुछ पल बिताई यादें, धागों सी सट गई

आस कहीं दूर से, वह चिड़िया लौट आए
बो सकें कोई बीज, खुशियां लौटा जाए
डूबते सूरज को, रोज उगते देखा है
होश आया हो कहीं भी, खुशियों को लौटते देखा है

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Sunday, July 29, 2018

हिमपुत्र

नाटा कद, मुस्काता चेहरा
हिमपुत्र की शान है
छोटी आंखें, चौड़ा कपाल
यही उसकी पहचान हैं

भ्रमित करती माथे की शोभा
मोहित करे कंठ की वाणी
साहस तेरा देख पर्वत और
नतमस्तक है हर एक प्राणी

गौरव संस्कृति दर्शाती बोली
सदैव आनंदित जीवन होली
नयनों से तेज छलकता
अपनों के लिए ही हृदय धड़कता

समर छेत्र में भीम भुजाएं
छाती है मजबूत शिलाएं
कोमल हृदय विशाल इतना
दुश्मन को भी गले लगाए

प्रत्येक कर्म में तन मन समर्पित
देव भूमि है इनसे अर्जित
आंख बिछाए रिश्तों की शोभा
और निष्ठा में जीवन यह अर्पित

देवात्मा की संताने
दशो दिशाएं ख्याति पाए
देवभूमि में जन्मे हिमपुत्र
त्रिलोक में नाम कमाए

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Sunday, July 22, 2018

भीगी सड़के

शहर की भीगी सड़के
जगी सुबह तड़के
चारों तरफ सूना पाती
आंखे फाड़े देखे जाती
मिजाज बदला सा
शहर का रंग उड़ा
लाली छाई
सूरज उगा, सूरज डूबा
चांदनी छाई
घनघोर घटा में
अब भी इतनी लाली क्यों 
रात दिन सुनसानी में
मानवता भड़की थी
नए दिन की आस में
शहर की भीगी सड़कें 
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Friday, July 20, 2018

पतझड़ की पीली पाती

   पतझड़ की पीली पाती
  अपने रोदन गीत गाती
  आस कितनी नयनों को
  जीवन संसार बहारों की


  दुख के घिरे हैं घने बादल,
  आस मधुप फुहारों की
  नयन अश्रु गिरने पर 
  वापस कहां जा पातेे
मरु की शिथिल भूमि में
  मोती से चमकते 
  टूटी टहनी 
  अब साथ कहां दे पाती
  पतझड़ की पीली पाती
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Friday, June 29, 2018

भूमि से छल

कोमल भूमि की बाँहों में 
शूलों से चुभते हैं वह दाग 
जो युद्ध समर में 
जल बहाव से बहाए गए 
जिस तरुण भूमि ने 
जाने कितने ही 
दर्द झेले हैं 
और अपने ही सपूतों का 
लहु संजोया है 
मगर उससे अधिक पीड़ा 
उसे उसके ही समर में 
 तब मिली जब 
उसमे उगाने वाला 
उसमे ही जीने वाला 
उसे अपनी मां समझने वाला
किसान  
कुछ लोगो द्वारा छला गया 
यह खाद रुपी दाग 
भूमि की उर्वरता पर प्रश्न थे 
पेटों पर मरहम थे 
जो उन शूलों से 
अधिक तेजी से चुभते हैं 
आज उसका सीना लाल है
और लोग कहते हैं 
सब प्रौद्योगिकी कमाल है 


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Wednesday, June 20, 2018

मकड़ी के जाले

आज सालों बाद
उन मकड़ी के जालों में
कुछ फंस आया
वह जाले

गांव के बीचों बीच
एक पुराने घर के
दरवाजे पर लगे थे
शायद आज उन
मकड़ियों का अंदाजा भी सही था 
वह फंसने वाले कुछ
इंसानी प्रजाति के लोग थे
जो कुछ सालों  पहले
उस घर को ठुकरा गये थे
और आज उन्हें
शहर ने ठुकरा दिया 
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Friday, June 15, 2018

दीया

रात की सुनहरी रौशनी में 
एक छत के नीचे 
दीया जलाए 
कुछ बच्चे 
किसी देश का 
भविष्य लिख रहे थे 

उस मिट्टी के दीपक के नीचे
भले ही अंधेरा था
मगर उसकी रोशनी में
सामने से बैठ
बड़ी तन्मयता से 
वह बच्चे पढ़ रहे थे
भले ही दीपक 
अंधेरे को
अपने अंदर ही 
समेटना चाहता था 
ताकि उन बच्चों का
ध्यान वहां न जाए
उसने भी सुना था 
बच्चे हर चीज को 
बड़ी जल्दी सीख जाते हैं 
और वह इन्तजार में था
 किसी तरह 
 जल्द ही 
रवि का राग पहुँच जाए  
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Wednesday, June 13, 2018

अंधेरी कोठरी

छोटे रोशनदानों से
चांद की रोशनी
अंधकार भरी कोठरी में
कुछ लोगों से छिपकर
कुछ वीरों से मिलने
चली आती थी

जहां पीने के नाम पर
एक मटका,
सोने के नाम पर
एक कंबल,
बड़े ही संहर्स पर मिले 
जहां एक समय
क्रांतियों ने जन्म लिया
देश की नीतियां बनी
वहां समय समय पर
कुछ बहादुर लोग
खुशी खुशी आते
और सुनहरे चांद से
संदेशा बयां करते
वह चारदीवारी
आज भी वैसी ही है
फर्क इतना है
आज का चांद 
उनसे बातें नहीं करता
कुछ छोटे चोर,लुटेरे,जेबकतरे
आज भी
वहां पहुंच जाते हैं
मगर जिनके लिए
असल में वह बने थे
वह देश छोड़कर भाग जाते हैं।
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कतरा : कागज का

वह कतरा
कागज का
कितने अश्रु रोता है
जिसको समेटने
हर व्यक्ति
समर्पित रहता है

स्वचलित समय की
कितनी भारी मांग है
जब रोटी का टुकड़ा भी
उसी के नाम पर
बिकता है
एक और रोता है
उसके अलावा
जिसकी अब बारी है
कागज का टुकड़ा बनने की
आदमी का सुख,
चैन और
ईमान बेचने की।


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Saturday, June 09, 2018

फल वाला

मुख्य सड़क के किनारे
एक चौपहिया 
बड़ी शांत अवस्था में
प्रतीक्षा कर रहा था
वह लाखों,करोड़ों वाला नहीं
बल्कि फलों के
एक ठेले वाला

किसी की तड़पन बांधे
दुखों को संभाले
पानी छिडकता
फलों वाला था
उसके नीचे कुछ बेकार पड़े
ना बेचने योग्य
फलों को फेंका था
जिसको बड़ी देर से
एक सुस्त बच्चा
निहारता,देखे जाता
थोड़ी देर में चुप चाप 
वह वहां पर आया
गिरे फलों को उठाया
और चला गया


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Friday, June 08, 2018

कलम

तलवार की धार में,
खून के कुछ छीटें
सूखे हुए
एक म्यान में कैद
हंसते है 
बड़ी नीर्लजता से
उस तीखी धार पर
जिसने उनको जन्म दिया
क्यूंकि उससे भी तेज,
धारदार,
असरदार चोट करने वाली
खुले आम घूमती है,
सस्ते में बिकती है,
और वह कलम
बड़ी ही शांत दिखती है।
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Wednesday, June 06, 2018

वजह


कितना अच्छा है
एक एक करके
सभी प्रजातियां 
लुप्त हो रही हैं

वनस्पतियों की,
जानवरों की,
मानवता की,
वह भी केवल
एक के कारण
क्यों ना ऐसा हो
उस एक का ही
विनाश हो जाए 
और एक नया संसार
फिर से उभरे!
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Tuesday, June 05, 2018

बाढ़


कल शाम की 
कहर बरपाती बाढ़
सब कुछ ले गई
जो समान उसने
कुछ पलों में ही
बहा दिए

मगर ना ले जा पाया
वह बेचैनी,
बिछड़ने की
वह खुशी,
मिलने की
और वह मानवता
जो उसके खिलाफ खड़ी होकर
मानव को बचा रही थी
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Sunday, June 03, 2018

डाकिया


खाकी की वर्दी पहने 
हर रोज
एक डाकिया
हर घर में
मीलों का संदेश
जमाने की मुस्कान
अपनों का सहारा
कागज के टुकड़ों में
बांट जाता है

उनकी कीमत 
नहीं लगाई जा सकती
उस मीलों के सफर में
एक बंधन को
साईकिल से बांधता
हर रोज दस्तक देता है
और एक बात
जो नजरअंदाज हुई
जरा खुदा से पूछो
क्या कभी उसके लिए भी
कोई खत
 आया होगा क्या
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Monday, April 30, 2018

टूटता तारा

जाने कितने टिमटिमाते तारे
यूं ही टूट जाते हैं
उस ऊंचे आकाश में

जिनको देख आज भी
बचपन की तरह
दो अंगुल मिला लेता हूं
आज भी कुछ सपने,
कुछ ख्वाहिशें
मांग लेता हूं
यह सब
मेरी मां ने मुझे सिखाया 
और मौत के बाद 
मेरी मां भी
आसमां का एक तारा बनी
जो आज भी खुद टूटकर
मेरे सपने पूरे करती है
और आज भी
मेरी मां के एहसान 
मुझ पर भारी हैं
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Sunday, April 29, 2018

लोरी

मां,सुनो ना
यह लोरियां क्या होती हैं?
इस नई सदी का 
एक नया सवाल

जिसके जवाब में गूगल
कुछ सुंदर से
चित्रण दिखा देता,
या कभी कुछ गाने
जो किसी नए भाव को
जोड़ने में असक्षम है
मगर विरासत तो
मां से आती है,
पिता से आती है,
घर से आती है,
समाज से आती है,
फिर इसको ना जानने में
नई पीढ़ी का क्या दोष 
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Friday, April 27, 2018

मनुष्य प्रगति

उन शमशानो में
अब लाशें नहीं आती
और कब्रिस्तानों में
न जाने कब से

नई कब्र भी नहीं बनी
दोनों रूठे भाई बहन से
अब कोई नहीं मिलता
सुनने में आया था
जमाना बदल गया
अब घरों के अंदर ही
शमशान मौजूद हैं
बीच सड़कों में ही
कब्रस्तान खुदने लगते हैं
शायद मनुष्य प्रगति
असीम है,अकल्पनीय है
यहां तक कि
खुदा भी नहीं सोच पाता

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जीवन की आस

वह बूढ़ा 
बरगद का पेड़


गांव के बीच में
किसी मीनार की भांति
अंबर की ऊंचाई से
निहारता चारदीवारी को
मूर्छित पड़े शमशनो को
मुर्दा कब्रिस्तानों को
किसी तरह
कोई मुझे काट
एक छोटा सा मॉल बना दे
ताकि कम से कम
खुशी नहीं
जीवन लौट तो आए 
उस गांव में
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Tuesday, April 03, 2018

एक पत्थर

कहा ना मान गया
हां हूं मैं पत्थर
यही थी ना जिद तुम्हारी
सही तो कहते हो
हां हूं मैं पत्थर
माना कि थोड़ा ठोस हूं
मौसम का कोई असर नहीं पड़ता
रोज की ठोकरों की फ़िक्र नहीं करता
हां हूं ना,वही पत्थर


जिसको भोर से पहले
तुमने तालाब में फेंका था
उस 'टप्प' की आवाज ने
बस तुम्हारा ही दिल जीता था
वही पत्थर जिसको पैरों से खेलते
तुम मीलों चल जाते थे
और अपने इस लंबे सफर का
हमसफ़र बनाते थे
वही पत्थर जिसने घर के कांच से
माना थोड़ा बैर की थी
मगर चमकदार(हीरा) होने पर
बड़ी रखवाली में सैर की थी
वही पत्थर जिनको तुम मिलाकर
सड़कों के नीचे बिछाते थे
या कभी उसको सिर पर रख
दो वक़्त की रोटी कमाते थे
जिसको बुनियाद  सांचा देकर
तुमने यह घर जोड़ा था
और शिल्प की प्रतिभा ने
जग का ध्यान खींच था
हां माना,माना कि मैं पत्थर हूं
सीमाओं में सैनिकों को आड़ देता हूं
माना कभी दूसरों के फेंकने पर
खून से भी रंग जाता हूं
नदियों के बहाव में बहकर
किनारों में जोर से पटककर
एक नया आकार तुम ही दोगे
थोड़ा लाल,पीला रंगकर
श्रद्धा से तुम ही पुजेगो
फिर कहां जाता है पत्थर
तुम्हारे उस दिमाग से
जो कल दिखाई तुम्हें देता
वह आज मेरे दिल में है
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Thursday, March 08, 2018

फिर से एक मौका

उस नदी के बीच
बहाव में खड़ा एक आदमी
एक छड़ी के सहारे 
कुछ ढूंढ रहा था
जब मेरी नजर
नदी के दोनों तरफ
जिंदगी की कश्मकश देखकर
थोड़ा मचल बैठी थी
और फिर देख बैठा
जिंदगी का एक कड़वा सच
कुछ अपनी पूंजी मंदिरों में,
और कुछ बाजारों में बहा आए
उस चस्मे वाली आदमी की
फोटो वाले कागज का घमंड भी
यहां चूर हो गया


सब अपना रोना रोने में व्यस्त
और जिंदगी पैसा कमाने में व्यस्त
आखिर वह नदी
इनके कौन से पाप धो रही थी
जिसमें उस दिन से पहले
इन्हीं की शौच बही थी
या जिसमें इनके पूर्वजों की अस्थियां
और उसी नदी में
आज वह अपने पाप धोने में
फिर एक बार वही गलती कर बैठे
जो जिंदगी भर की
वह बीच नदी में खड़ा आदमी
जो भूखा मरने को तैयार था
वह कोई और नहीं
खुद अवतार था
और आज इंसान को दोबारा मिला मौका भी
बाकी दिनों की तरह
बस बेकार था
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अजनबी नदी

जो धाराएं निकलती हैं
उन पहाड़ों के बीच से
अपनी छाप छोड़ती
निकल जाती हैं भ्रमण पर
किसी अजनबी शहर के
कोई अनसुनी जगह के
जहां उनका अपना कोई नहीं होता
हर किसी का परायों सा व्यव्हार,
मगर पराया भी कोई नहीं होता
उसके शहर में प्रवेश करते ही
सिर में कूड़ा रख दिया जाता है
भला अतिथि देवो भव का भाव
न जाने कहां रह जाता है
कूड़े से लतपत
प्लास्टिक से लिपटी
और मल मूत्र में नहाई
धरा की प्यास बुझाती
मानव का संकट मिटाती


उस मां सम नदी को
अब बीच शहर पहुंच कर
फूलों से सजाया जाता है,
दूध में नहलाया जाता है,
और पकवानों का बीड़ा भी लगाया जाता है
शायद अब उसको थोड़ा झुठलाकर,
आंखों में पर्दा लगाकर
बेवकूफ बनाया जाता है
क्यूंकि अब मां स्वरूप नदी को
भगवान का दर्जा दिया जाता है,
पलकों में बिठाया जाता है,
सारे दुख उनको सौंपकर
दुखहरिणी बताया जाता है
इन जख्मों में मरहम कोशिश
रोज सुबह शाम की है
किसी दूर देश अजनबियों को
झुठलाते फरमान की है
इस पहले शहर धक्के खाकर
अब वो थोड़ा सहम सी जाती है,
थोड़ा लंगड़ा भी जाती है
और अजनबी शहर के
अजनबी शवों को ढोती
अपने को तैयार करती है
फिर किसी नए शहर की
प्यास और स्वार्थ खत्म करने के लिए
फिर किन्हीं नए प्रकार के
कष्टों को झेलने के लिए
जो शूल से चूभतें हैं
छालों से दूखते हैं
मगर इस बार छाप नहीं छोड़ते
अभी उनको तय करना है
हजारों अजनबी शहरों का सफर
और अस्तित्व को पहले ही खो चुकी नदी
अब दिखावे के लिए
समा जाती है एक खारे कोश में
एक नए संग्राम में
जहां केवल वातावरण खारा है
वहां के लोग नहीं
और शायद पहाड़ों तक पहुंची खबर
कुछ हद तक,सही थी
कि शहरों में अजनबी का
शोषण किया जाता है
और इससे बड़ा जीता जागता सबूत
लोगों को दिखाई नहीं पड़ता
शायद इस मामले में
पहाड़ के लोग संकुचित हैं
और होंगे ही
वहां हर एक की पहचान
अलग जो है

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Friday, March 02, 2018

अमर होलिका

रंगों के उल्लास में भरपूर
जीवन रंग तुम संजो गई
इस बार भी अपनी देह जलाकर
होलिका तुम अमर हो गई

सूना है तुम्हारी गोद में
एक नन्हा बालक प्रहलाद भी था
ब्रह्म वरदान चाहे था तुमको
वह बस नन्हीं जान ही था
अपने अहं में चूर होकर
तुम कैसे यह कहानी गढ़ गई
जिंदा तो शायद प्रहलाद रहा था
फिर अमर तुम कैसे हो गई



जले कितने ही नीरव,माल्या
इन पुतलों  क्या जाता है
वजूद मानव खुद को रहा
त्यौहार हर वर्ष ही आता है
इन अनेकों रंगो से भरपूर
विषय जीवन उल्लास का है
अब कितने प्रहलाद होंगे
चाहत मानवता की प्यास का है

मानव मिटते हैं कितने ही
बात मानव पर आस की है
पुतले होते हैं कितने ही
बात वापस उनमें जान की है
अगले साल भी होलिका जलाओ
प्रहलाद बन आग में कूदना होगा
चिंगारी कितनी बड़ी बनेगी
यह तुम पर ही निर्भर करेगा

तंत्र में तुम खोट डालकर
नीरव ना तुम उपजा देना
होलिका तो जलेगी ही
अमर तुम ना बना देना 
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Wednesday, February 21, 2018

तौलिया

आज आंगन के कोने में रखा
एक कपड़ा नजर आया
जिसने थोड़ी देर पहले
निचोड़कर,मरोड़कर और
बहुत कष्ट झेलने के बाद भी
फर्श के सारे कीटाणुओं को
अपना दुश्मन समझ मर डाला था
ये वही पुराना हो चुका तौलिया
जो कुछ वक़्त पहले,
कभी दादाजी गले में,
पापा के कंधो पर,
मां के माथे पर रहा करता
जिससे कुछ समय पहले


मुंह पोछना और हाथ पोछना 
जैसे काम लिए जाते
यह वही नया तौलिया था
जिसे मां माथे में पहन
पड़ोसन को चिढाया करती
यह वही यादों का तौलिया था
जिसे कभी धोती बनाकर 
बच्चे पहन लिया करते
यह वही तौलिया
सफेद,लाल,हरे,नीले और भी
बहुत रंगो में खप जाता
वही यादों का समंदर था
जो हमसे ज्यादा नदी,झरने
और भी कई तीर्थ घुमा था
और यह वही तौलिया जो 
हमसे ज्यादा घर की जिम्मेदारी उठाता था
आज अपने अंतिम समय में भी
सारे घर की गंदगी का जिम्मा उठाया
मूछें उठाए बाहें फैलाए
बैठा है आसन जमाकर
जिस आंगन में कभी बेटियां खेला करती
और इस तौलिए से ज्यादा काम खुद करती 
और इस तौलिए को भी संभालकर
अपने से ज्यादा प्यार देती 


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Tuesday, February 20, 2018

The cracks in house

I heard 
the cracks in the house
symbolise something
but once
I caught them whispering
the uneasy moment I had
but I remain quite
carefully listened them
it was not about
their colour
not about their future
and even not about the wealth
hanging over them
like human do
what they are whispering is
we are a part of this earth
the same soul we have
If we are derived from same soul
so we are one not different
the only thing
human not talk about
the humanness
serve love,get love
if we all have to end in same soul
why we made the 
the tricks of happy life
the thing remain for last is 
not humans
but the humanness

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Friday, February 16, 2018

पंखे में धूल

उस छत से लटकते पंखे में
समय समय पर 
कुछ धूल जम जाती 
और कभी कभी
कुछ जाले भी लग जाते 
जब भी मैं,सीधा लेट सो रहा होता
तो छत के उस दृश्य को देख 
एक डरावना एहसास होता 
मगर गर्मियों के आने से पहले
मुझे वह पंखा,हमेशा साफ करना पड़ता था 
कभी कभी ऐसा लगता था
जैसे वह पंखा मुझसे कुछ कहना चाहता हो
मगर मैं अभी छोटा ही था,नासमझ था
और जैसे जैसे मैं बड़ा हुआ 
मैंने एक बात और गौर की 
धूल जाड़ों तक आते-आते 
एक मोटी परत सी बना जाती 
और अगर एक भी
भिनभिनाती मक्खी उससे टकरा जाए
तो बिस्तर में बहुत धूल गिरा जाती
क्या करे,शहरों के कमरे थोड़ा छोटे होते हैं 
मगर एक दिन अचानक
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Thursday, February 15, 2018

धूल

हवा के साथ फुहार सी
निर्झर उड़ती जाती धूल
मौसम में बहार सी
नित्य एहसास कराती धूल

बारिश में सौंधी खुशबू
खींच कहीं से लाती धूल
शरीर लतपत हो जाए गर
अपनापन ले आती धूल



बच्चों के खिलौने की
कमी दूर करती धूल
जमीन से ऊंचा उठने पर
जमीं पर पटक जाती धूल

बंजर पड़े गांवों को
चादर सी ढक जाती धूल
आंगन की उन यादों पर
मरहम सी छा जाती धूल

तूफानों से दंगल करती
कहर सी बन जाती धूल
कभी नवीन संदेशा बनकर
लंबा सफ़र तय कर जाती धूल

यादों का सूनापन तोड़ती
हमसाथी बन जाती धूल
अकेले पड़े उन सायों को
जिंदगी भर आजमाती धूल

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Monday, February 12, 2018

The dream

When getting out of bed
Reminds me the dream
I have seen
I make lot efforts
But only beutiful of those
Remain for few moments
Some for few days


Gives the painless relieve
After every journey of failure
The dreams which create
A great suspense
How all things are 
So closer to me
Are these real
Atleast not fake 
Are the incidents
Going in our daily life
But some says
Dream have stopped to came 
In my sleep
The reality is
They have too stopped
To try a new thing
Say creativeness
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Sunday, February 11, 2018

Shining drops

The drops
Shines in light
Like a diamond
Which fell on your screen
Which are quite salty
Taste them
Called tears
Are the symbols,
Are the means,
Are the way,


To show your happiness
After 
Writing the beautiful words
You have collected
After a lot efforts
Don't go them waste
Keep on writing
Fill the sorrow 
With words of love
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Wednesday, February 07, 2018

जिंदगी : एक पहेली

जब मुझसे कहा गया ,जिंदगी की हकीकत साबित कर
मैंने पूछा अपनी जिंदगी से, अपने अंदर से
क्या यह संभव है
कैसा भविष्य दिया मुझको , कैसे तेरा अतीत वया करू
क्या इनसे सच्चाई बोलू,क्या पैगाम जारी करू



सच बोलू तो रो जाएंगे,कहानी गढ़ू तो खो जाएंगे
केवल कुछ पल में ही जिंदगी कैसे साबित करू
क्या सीख जाऊंगा यहां से,खुद से कैसे बात कहूं
अपनी मर्ज कैसे बताऊं, या औरो की बात कहूं
एक अवसर जो मिला है,उसका कैसे अब बखान करू
बिना किसी मेरे कर्म के,एक जीवन का अवसर मिला मुझको
जिसको इशू,अल्लाह और अपना खुदा माना
जिसने दिया मुजको जन्म उसको ही अपना भगवान माना
कितने अच्छा कर्म पूर्वजों के,जीवन जो यह पाया है
इस जीवन के इन लम्हों  में देखनी बहुत अब आया है
कुछ सीख इस जीवन में,यह तेरी सच्चाई
नित्य कर्म कर सबको मानकर ,यह तेरी अच्छाई है
विश्व दृष्टिकोण मान तो,उस नाम रखने वाले साधु को गरीब मानू
या फिर उसका ज्ञान देखकर ,स्वयं परमात्मा को जानू
भारत तो है स्वयं सारथी ,अपना पथ खुद बनाएगा 
तू अपने लिए जिएगा तो , अपने में ही मर जाएगा।
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Thursday, February 01, 2018

जिंदगी

सुबह  से लेकर शाम तक
थकान है जिंदगी
छोटी छोटी बातों में आने वाली 
मुस्कान है जिंदगी



मनुष्य के सत्कर्मों की
पहचान है जिंदगी
हर गिरते पड़ते क़दमों पर
एक पैगाम है जिंदगी

कभी संसार की मोहमाया से
डूबी है जिंदगी
कभी किसी पश्चाताप का
आवरण है जिंदगी
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Tuesday, January 23, 2018

विधाता से प्रश्न

कौन है सूत्रधार यहां का
एक प्रश्न है मेरा उससे
जिसके तुम गुणगान करते हो
एक दिन मिलाना मुझसे

असत्य कहो मगर सच है काला
भड़केगी जब क्रोध की ज्वाला
कहा की जल्दी थी तुमको
तुमने कैसा इंसान रच डाला


अोत प्रोत स्वयं के अंदर
चला रहा नित्य नव दंगल
क्या पाने कि चाह है इसकी
किस दिशा में राह है इसकी

कठपुतला है मिट्टी का
स्मृति स्वयं की जानता है
कर्म अपने नित्य भूलकर
अहम निश्चय ही पालता है

स्मृति नित्य करता जन को
भ्रमित कुबुद्ध माया में
छिपी भीतर है उसके जो
कुरूप दिखती जो काया में

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Thursday, January 18, 2018

इंतजार तो है

उस अनकही सी बात का
इन लम्हों में साथ का
इंतजार तो है

आने वाली उन यादों का
हंसाने वाली उन बातों का
इंतजार तो है

प्यारी सी एक आस का
और अपनों के पास का
इंतजार तो है

उन गुदगुदाती सी बातों का
और सपनों से भरी रातों का
इंतजार तो है


मृदू ऋतु सावन का
और निर्झर उड़ती पवन का
इंतजार तो है

गुजरते हुए राही का
और हमेशा तत्पर सिपाही का 
बिछड़ने में दर्द का
और जाड़ों में सर्द का
इंतजार तो है

इस युग में संस्कृति का
और युवा में अमर जोश का
मेहनत के फलक का
और इंसान में ललक का
इंतजार तो है

जीवन के उस मंत्र का
और स्वयं के एक तंत्र का
इंतजार तो है

इंतजार के लिए धैर्य का
और देश के लिए शौर्य का
इंतजार तो है
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Sunday, January 07, 2018

अखबारों में खबर

सूना है अखबारों को
नई खबर मिल गई
जब जिंदगी की कश्ती
उम्मीदें हारकर डूब गई
कुछ हंगामे,कुछ तमाशे हुए
मगर सब बेकार
अब अखबारों को एक और
नई खबर मिल गई



जब मौसमों की मार में
गरीबों की हालत बिगड़ी गई
मगर ऐसी पड़ी कि असहन हुई
तब कुछ दान हुए,सम्मान हुए
फिर भी जिंदगियां डूब गई
और अखबारों को
एक नई खबर मिल गई

ये आते जाते मौसम थे
और सावन बेईमान
इस भादौ की लौ ने
बहुत किया परेशान
हर साल ये मौजूद हैं
फिर भी जिंदगियां डूब गई
और अखबारों को
एक नई खबर मिल गई

सब कुछ समान है
इन गुजरते सालों में
बजट इतना खर्च हुआ
मगर सुराख है हर कामों में
इस सुबह की शुरुआत भी
चाय की चुस्कियों से हुई
और अखबारों को
एक और नई खबर मिल गई
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Tuesday, January 02, 2018

बिन मंजिल का मुशाफिर

आज आंखों से दोबारा
आंसू छलके
जब अकेली चलती राहों ने
अपनेपन का एहसास कराया
एक बात इसमें 
बड़ी गौर करने वाली थी
उन राहों में
केवल एक मैं ही अकेला न था
सब अपनी राह में
अजनबी मुसाफिर की भांति


जा रहे थे न जाने 
कहां की जल्दी और
जिंदगी की उलझन ने
उन्हें अंधा बना दिया
वह अपनो को
पहचानने तक को तैयार न थे
और उनके परिवार
दो चार से बड़े न थे
उन चारों पर जो 
छत्रछाया होनी थी
वह किसी वृद्धआश्रम में
अपने दिन काट रही थी
या किसी
मझौले से गांव में
अपनों का इंतजार कर रही थी
सब के पास
केवल एक ही बहाना
सबने कुछ न कुछ 
खोया है
मगर जिसको वह
खोया कह रहे थे
वह असल में
एक मोती का पत्थर था
जिसको अनजाने में सब
जुगनू समझ बैठे थे।
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Monday, January 01, 2018

The mind

Amazing
The amazing answer 
When my grandfather
Asked a question
An uneasy movement
What is faster than wind
What came in my mind is
Firstly
The horse,
The tiger,
The leopard,
The lion,
No, it's not right
The car,
The plane,
Or any man made weapon
No,so what's the answer
I asked


The mind
What , the mind?
It's your mind
Which is faster than wind
Faster than any super computer
Think a lot
An ocean of answers came
But don't think of
The centre doing this
But not always in 
Right direction 
It's the mind 
Who thinks a lot answer
At an stunning speed
Which keep us
Above all 
The regulating power  
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