स्वप्न देखे बीज बोकर
रातों की नींदें खोकर
फसल जब लहराई
सिंचाई की जरूरत आयी
चारों तरफ तब सूखा था
कुआ खुद ही भूखा था
मिट्टी में दरारें थी
किसानों की कराहें थी
तब भी तुम जागे नहीं,
फसल चक्र अब बीत गया
रक्त धमनियों से सूख गया
सूखा वर्ष घोषित होकर
मानसून प्यासा रोकर
चला गया,
अब पूस के महीने में
ये बाढ़ कैसी आयी
चैन से सोए "हल्कू" की
नींद किसने जगाई
रहा शेष यदि कुछ
उसे भी तुम उजाड़ गए
जरूरत थी तब सोये रहे
और हे मेघा,
तुम अब आये
You are a great writer
ReplyDeleteGreat piece sir synchronizing with the time
ReplyDeleteAti sundar sir....👍👍👍
ReplyDelete