कहते हैं रुद्रनाथ महादेव में भगवान शिव के मुख भाग के दर्शन होते हैं। जब महाभारत के युद्ध के बाद गोत्रहत्या व ब्रह्महत्या के पाप का प्राश्चित और मुक्ति पाने के लिए पांडव भगवान शिव के दर्शन के लिए भटकते रहे। तब भगवान शिव के भिन्न भिन्न भाग अलग अलग स्थानों में उत्पन्न हुए।  और रुद्रनाथ महादेव में उनका मुख भाग प्रकट हुआ। सदियां बीत गयी हैं, आज भी हज़ारों की संख्या में लोग रुद्रनाथ की यात्रा करते हैं। रुद्रनाथ महादेव का मंदिर 3654 मी की ऊंचाई पर बना हुआ है। जहां पहुंचने के लिए सगर ग्राम से लगभग 20 - 22 किमी की पैदल यात्रा करनी पड़ती है। सगर ग्राम गोपेश्वर से 5 किमी की दूरी पर बसा हुआ है और गोपेश्वर पहुंचने के लिए इक्कीसवी सदी की बारहमासी सड़कें बन चुकी है। इन बारह मासों में से आप बरसात के महीनो को जरूर हटा सकते हैं क्युकि यही रस्ते आपको बरसात में अंतिम गंतव्य भी पंहुचा सकते हैं।  
    यह सब ऐतिहासिक और समसामयिक जानकारी मुझे तब मिली जब मैं सुबह 11 बजे से 8 घंटे और पिछले छः माह की यात्रा के बाद भारत दा/सर से मिला। इससे पहले हम साथ में मध्यमहेश्वर महादेव की यात्रा भी कर चुके थे। भरत दा से मिलते ही ऐसा लगा मानों दूरी केवल 8 घंटे की ही थी। भारत दा ने आसमान में तारों को दिखते हुए बताया कि जहाँ पर आसमान ख़तम होता है कल हमें वहां पहुंचना है । रात में कुछ न दिखाई देने के कारण मैं ट्रेक की गंभीरता को भांप नहीं पाया।  फिर हमारे सभी अन्य साथी, योगेश सर, हेमलता मैम, मनीष, बंटी और गुलशन से भी मुलाकात हुई। यह सर और मैम कहने का रिवाज हमारे कॉलेज के समय से है। खैर !
    हमेशा की तरह भरत दा ट्रेक के लिए पूरी तरह तैयार थे। और हम बाकी सभी नौसिखिये थोड़ा थोड़ा। मेरे पास वाकिंग स्टिक थी, किसी के पास ट्रैकिंग शू , कोई पफर जैकेट, तो कोई गर्म इनर लाया था। लेकिन भरत दा 






 
 
 

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