The words of deep emotion are here.

Wednesday, November 22, 2017

अफ़वाह

कल शाम एक अफवाह फैली
उस दवानल के आग सी
जैसे कोई तूफा आ चला हो
या आसमान से बिजली आ गिरी हो
सभी को इसकी भनक लगी
मगर आवाज ना सुनाई दी
उसी को ढूंढते हुए सब
चौराहे में बनी मूर्ति के पास
चौड़ी निगाह और बड़े कान लिए
उसी पुरानी जगह आ  पहुंचे



और देखते ही देखते
एक भीड़ जमा हो गई
कोई सकते में ही आया 

तो कोई आधी नीद में
क्यूंकि आज था कुछ खास
आज दोबारा
वहीं पुराना दिन आया
जब गांव के बूढ़े पेड़ के नीचे













कुछ बूढ़े बैठा करते थे
वह खुशियां बाटा करते थे
मगर आज भीड़ तो जमा थी
लेकिन वह दुख सुनने आई थी
खुशियों में भीड़ जमा होना
बहुत अच्छा है लेकिन
गम में अपने ही आते हैं
आज आपने तो मिले थे उस खबर को
मगर क्या फायदा
वह चलते बने
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