The words of deep emotion are here.

पंखे में धूल

Poetry comes from the highest happiness or the deepest sorrow. - A.P.J.ABDUL KALAM

Thursday, September 21, 2017

वह किसान

बादल भरे गुस्से में देखो बिजलियों का फरमान आया है कहर आएगा एक बार फिर हवाओं का पैगाम आया है लगती नहीं ये व्यर्थ कहीं भी गर्जना इन बादलों की शांत चितवन बैठे थे वो अब भड़की है ज्वाला सी कौन है जा भिड़ने वाला शांत पड़े इन शोलों से काम हुआ लगता है शायद मानव के इन बोलों से  लगता है उजालों को वजह स्वाधीन रहा होगा   किस्मत जिसकी देख खुदा भी बादलों से जा बोला होगा ताक रहा महीनों से वो आसमान को बारम बार उसके लिए...
Share:

Saturday, September 16, 2017

ऊपर वाले के नाम

वह रोज..... शीश झुकाता है उन दराख्तों पर जो शायद केवल किस्मत वालों की सुनते हैं दरअसल उन सीढ़ीयों में भी कुछ बदनसीब ही बैठते हैं क्योंकि दिन तो उनके हैं जिनके हाथ से केवल कुछ सिक्के छूट जाते हैं अरे! तुम क्या सोचते हो थोड़ा सही जाओ उनका कुछ छूटता तो है उन हाथों पर जो केवल  उन दराख्तों पर फेंक आते हैं उनका क्या...
Share:

Friday, September 15, 2017

वो गांव बहुत याद आता है

चांदनी सी वो रात भुलाकार सपनों की यादों में खोकर सुबह सवेरे जागू तो वो गांव बहुत याद आता है शहरो की ये छठा तो देखो निर्मल बहुत ही लगती है अगर झांक के देखो अंदर वो गांव बहुत याद आता है भरी दोपहरी के शोर में वैसे लगता कुछ भुला हूं जैसे अगर पेड़ छाव् में पाऊ तो वो गांव बहुत याद आता है दो पैसों की शिद्दत में जन्नत से जुदा हुआ था मैं सम्मान पाने को शायद उनका जिनसे बहुत जुड़ा था मैं झूठी कस्मे वादे निभाकर शहर को क्यों तू जाता...
Share:

Tuesday, September 12, 2017

ये कविताएं

अच्छा है अच्छा है कि तुमने कविता लिखी बहुत अच्छा है कि तुमने कविता लिखी न जाने कितने जीवनों को संवारा कितनों को राह दिखाई कितनों में जीने की अलख जगाई आजादी से लेकर आज तक दंगो से लेकर राज तक आतंक से लेकर मातम तक उन मनों से लेकर आप तक और आप से लेकर आपके दिलों तक कितना योगदान है इन कविताओं का बच्चों के होठों में मुस्कान आ जाती जब बंदर मामा की शादी हो जाती चंदा मामा दूर से आ जाते मास्टर जी जब पहाड़े पड़ाते छोटे बच्चे घरों को...
Share:

Sunday, September 03, 2017

कहते हैं कि हम इंसान हैं

कहते हैं कि हम इंसान हैं इंसान के अंदर एक मानव है जो अनल,पवन ,नीर,आकाश और पृथिवी से बना है और इसके भी अंदर इससे भी बड़ा इससे विराट पंचतत्वो को समाहे हूए एक आत्मा है जो सूक्ष्म है जो अनंत है जो सास्वत है जो सदैव है जो निराकार है और इन सभी को समाहे हुए बनता एक इंसान है कहते हैं कि हम इंसान हैं इस इंसान के अंदर एक दानव है जो हमारा काल है जो अहम,स्वार्थ,ईर्ष्या,लोभ से बना है और इसके भी अंदर इससे भी बुरा इन सभी को समेटे हुए एक...
Share:

Indiblogger