The words of deep emotion are here.

Friday, September 15, 2017

वो गांव बहुत याद आता है

चांदनी सी वो रात भुलाकार
सपनों की यादों में खोकर
सुबह सवेरे जागू तो
वो गांव बहुत याद आता है

शहरो की ये छठा तो देखो
निर्मल बहुत ही लगती है
अगर झांक के देखो अंदर
वो गांव बहुत याद आता है


भरी दोपहरी के शोर में वैसे
लगता कुछ भुला हूं जैसे
अगर पेड़ छाव् में पाऊ तो
वो गांव बहुत याद आता है

दो पैसों की शिद्दत में
जन्नत से जुदा हुआ था मैं
सम्मान पाने को शायद उनका
जिनसे बहुत जुड़ा था मैं
झूठी कस्मे वादे निभाकर
शहर को क्यों तू जाता है
वो गांव बहुत याद आता है
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