The words of deep emotion are here.

Tuesday, January 23, 2018

विधाता से प्रश्न

कौन है सूत्रधार यहां का
एक प्रश्न है मेरा उससे
जिसके तुम गुणगान करते हो
एक दिन मिलाना मुझसे

असत्य कहो मगर सच है काला
भड़केगी जब क्रोध की ज्वाला
कहा की जल्दी थी तुमको
तुमने कैसा इंसान रच डाला


अोत प्रोत स्वयं के अंदर
चला रहा नित्य नव दंगल
क्या पाने कि चाह है इसकी
किस दिशा में राह है इसकी

कठपुतला है मिट्टी का
स्मृति स्वयं की जानता है
कर्म अपने नित्य भूलकर
अहम निश्चय ही पालता है

स्मृति नित्य करता जन को
भ्रमित कुबुद्ध माया में
छिपी भीतर है उसके जो
कुरूप दिखती जो काया में


सफल संसार जीत की चाह में
खोता स्वयं का साया है
विस्मृत करती लीला यह
क्या यह भी तेरी माया है

छाया को स्वयं मानकर
कुरूपित करता इस मानव देन को
क्या स्मृति मिट्टी पालेगी
मिट जाएगा स्वयं स्वरूप वह

कैसा इंसान बनाया तूमने
कैसी इसमें सिलावट की
क्या तुम्हारी बनाई मिट्टी में भी
कहीं और की मिलावट थी

मानकर भूल मानव गलती को
अमानव तत्व जो पाए थे
चतुर्थ लोक भी व्याप्त है कहीं
जहां से यह आए थे

भूल को अपनी पाट मनुष्य
स्वयं राह वह ढूंढ रहा
सत्य सम्मुख पाकर भी वह
अपनी आंखे मूद रहा

तेरी धरती , तेरा अंबर
हमको छमा है चाहिए 
कल्याण करने मानव जात का
स्वयं धरती पर आयिए

तुम्हारे इस अवतरण को
चारों दिशाएं झांक रही
नश्वरता ही खत्म करो
मानव संस्कृति मांग रही

भयभीत है स्वयं के ही
आविष्कारों से अपने अपार
स्वयं ही सभ्यता खो बैठेगा वरना
शांत न हुआ अगर इस बार
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