The words of deep emotion are here.

पंखे में धूल

Poetry comes from the highest happiness or the deepest sorrow. - A.P.J.ABDUL KALAM

Thursday, December 19, 2019

कसूर किसका

उसके बेटे उसे छोड़कर जा चुके हैं उसका पति अब नही रहा पूरे गांव में अकेले वह नहीं रह सकती उसे अकेलापन खलता है, वो पहाड़ से उतरकर शहर में आई है उस बूढ़ी को काम नहीं मिला उसकी मजबूरी ने उसे सड़क पर ला छोड़ा मैं उसके पहनावे से बता सकता हूँ वह कोई कुमाऊनी महिला है उसके गले का गलोबन्द उसकी नाक में फुलि हाथों के कड़े पैरों की चैन पटि  उसके बैठने का तरीका बात करने का अंदाज मैं पूरे विश्वास से कह सकता हूँ वह कोई कुमाऊनी महिला है लेकिन अब उसके मजबूत हाथ डर डर कर कुछ मांगते हैं गर्व और मेहनत से बिताई जवानी अब उसे रो रोकर याद आती है भूख मिटाने के लिए वह...
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Wednesday, September 25, 2019

अदीबा

आज घर मे फिर लड़ाई हुई। एक एक कर घर के सारे सामान बाहर आने लगे। जैसे अचानक खिली धूप के बीच बारिश होने लगे और ओले पड़ने लग जाए, इन ओलों से लगी चोट को सहना बड़ा मुश्किल काम है।इस बात को समझते हुए करीम कुछ बर्तन की चोट सहकर घर से बाहर निकल गया। यह कोई नया तमाशा नही था।अब यह पूरे मोहल्ले के लिए आम बात हो चुकी थी।जब से अदीबा करीम से निकाह कर इस नए घर मे आयी थी तब से ऐसे झगड़े होना बहुत आम बात थी।ऐसा नही था कि उनके बीच कोई मनमुटाव था बल्कि अदीबा के दिमाग मे एक बात घर कर गयी थी।दिमाग भी शैतान का घर होता है, जब तक सही दिशा मे है तो सही मगर जैसे ही दिशा से...
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Tuesday, July 30, 2019

छत में चांद

मेरे घर की छत में  चांद आया आधा नहीं, पूरा चांद उसकी चांदनी फैली चारों ओर हां, चांद की चांदनी चांद न ही पुरुष है न ही चांदनी महिला अगर होते तो क्या चांदनी अपने यौवन में, सबरीमाला जा पाती या चांद मनमर्जी से, तीन तलाक दे सकता  खैर जो भी हो चांदनी का चांद या चांद की चांदनी  मगर मेरे घर की छत में चांद खूब खिला ह...
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Tuesday, May 07, 2019

तिनका और घौंसला

एक छोटा सा घास का तिनका क्या कर सकता है कहीं जमीं पर पड़ा -पड़ा कभी आंधी, तूफानों में उड़ा पैरों तले रौंदा जाता बारिशों से सड़ता क्या कर सकता है लेकिन यह सच्चाई नहीं वही तिनका जब मिलता है एक और तिनके से और ऐसे ही हजारों मिलकर, एक घोंसला बनाते हैं जिसमें एक छोटी सी चिड़िया रहती है जो समझती है, हर तिनके को जानती है कद्र करना क्यूंकि उसने धूप की तपिश झेली, आंधियों में उड़ान भरी बारिशों में सहेज, तिनकों को छावों में जोड़ा और एक एक तिनके को इकट्ठा कर अपना घर बनाया जहां वह आज खुश है। फिर मानव स्वयं ही अपनी कद्र नहीं जानता है अपनी योग्यता को, नहीं पहचानता...
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Sunday, April 07, 2019

फर्क

यहां पेड़ों पर मछलियां बैठी हैं, उधर पानी में चिड़िया तैर रही हैं, आज रात भर सूरज छाया था, दोपहरी में, चांद सफेदी फैला रहा, आज यह क्या हो रहा है देखो कहीं गौशाला में मनुष्य तो नहीं बंधा, शहरों में कुत्तों का शासन चल रहा हे मानव,  यदि स्मृति शेष है तो दुख मना भूल गया, तो सुख ये दुनिया तेरे इशारों से हट चुकी है सुन, किसी गौशाला में बैठे तू भौंक, चिंघाड़, हनहना कुछ भी कर अब तू भी जानवर है और अब याद दिलाने की, जरूरत...
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Monday, February 25, 2019

मैं जानना चाहता हूं

सुनो बापू तुम कहां हो क्या तुम भी परलोक सिधार गए मैंने बचपन से केवल तुम्हारा नाम सुना और एक दिन जाना कि तुमने तो केवल आजादी दिलाई थी हां, मैं नहीं जानता आजादी की कीमत क्यूंकि मैंने गुलामी नहीं देखी वैसे एक बात पूछू क्या तुम आज भी नज़रे गड़ाए हमें देखते हो मैं जानना चाहता हूं और यदि देखते हो तो क्या लाठी, आप ही नहीं उठती या दृगों की धार रुक नहीं पाती मैं जानना चाहता हू...
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