The words of deep emotion are here.

Friday, April 27, 2018

मनुष्य प्रगति

उन शमशानो में
अब लाशें नहीं आती
और कब्रिस्तानों में
न जाने कब से

नई कब्र भी नहीं बनी
दोनों रूठे भाई बहन से
अब कोई नहीं मिलता
सुनने में आया था
जमाना बदल गया
अब घरों के अंदर ही
शमशान मौजूद हैं
बीच सड़कों में ही
कब्रस्तान खुदने लगते हैं
शायद मनुष्य प्रगति
असीम है,अकल्पनीय है
यहां तक कि
खुदा भी नहीं सोच पाता

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2 comments:

  1. Nicely elaborated Yuvraj nature of today's generation.

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  2. यहाँ तक पहुचने के लिए तो ईश्वर ने हमें नहीं हीं बनाया होगा I बढ़ियाँ प्रस्तुति I

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