The words of deep emotion are here.

Thursday, August 16, 2018

इशारे

घर के किसी कोने में
अखबारों का ढेर
देख है कभी
सूना है कभी उन आवाज़ों को
उन बातों को
जो वह आपस में करते हैं
जिन बातों से वह झगड़ते हैं

मत करना कोशिश
कभी उनको सुनने की
गलत समझ बैठेंगे तुम्हें
चाहे खुद जल जाएंगे 
मगर ख़ाक कर देंगे तुम्हें
ऐसा ही फल होता है
दूसरों की बातें
चुपके से सुनने का
यहां की बात वहां कर
नज़रों में अच्छा बनने का
क्यों न अखबारों को
कुछ काम दिया जाए
कम से कम अफवाहों को
उनके कानों से बचाया जाए 
Share:

2 comments:

Indiblogger