The words of deep emotion are here.

पंखे में धूल

Poetry comes from the highest happiness or the deepest sorrow. - A.P.J.ABDUL KALAM

Sunday, December 31, 2017

नई डगर

जो पाने की ख्वाहिश थी उस पथ पर चलते जाना तुम हो अगर अंधेरा बहुत नया सवेरा बन जाना तुम डगर अगर मुश्किल हो बहुत आसान बनाते जाना तुम राह भटक गए हो अगर एक नई राह बनाते जाना तुम कांटे मिले अगर राहों में कुछ कम करते जाना तुम मुश्किल लगे यह भी अगर कुछ फूल ही बोते जाना तुम हार जीत तो मोड़ हैं राह के सजग कदम बढ़ाना तुम आंधियां अगर कदम रोकेंगी उसको चीरकर जाना तुम साथी मिले खुशकिस्मत अगर नए अनुभव लेते जाना तुम इंसान ना मिले...
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Thursday, December 28, 2017

पलायन २

जन्मभूमि आज भी पलकें बिछाए बैठी है अपनी संतानों के इंतजार में जो बरसों पहले अपनी जन्मभूमि को छोड़ चुके थे वह उनके लिए मात्र एक जगह थी मगर जन्मभूमि के लिए वह हमेशा उसकी संतान थे जो उनको हमेशा अपने आंगन में हंसता खेलता देखना चाहती थी मगर वह भी न जाने किस बंधन में बंधे थे जो इतनी समस्या के बावजूद भी वापस आने को तैयार न थे एक वही दिन था जब जन्मभूमि की आंखे  नम थी उसके बाद,उसको भी मुर्दों की भांति आदत पड़ चुकी...
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Wednesday, December 27, 2017

The Supreme

Astonishing an astonishing question that arises  at least once in mind of every person that  who created us the God........,ohhh..! But more than this much surprising is that we created God very confusing trying to find truth But  the creation is by hope,beliefs,trust or any other reason which keep us happy keep us calm cools our mind that power of faith keep the uneasy struggle very easy these all...
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तांडव

धड़कने खौफ खाकर रुक जाती फिर भी फौजें तेरी वापस न आती शायद मुसर्रफ हारने तेरी फौजें आती सदा हारकर ही वीरों से फौजें हैं तेरी जाती यह कृति नहीं दीप्त स्वप्न है बोलता मुझे तेरा भविष्य दिखता है सूली पर झूलता क्यों तू उत्तरोत्तर सीमा है लांघता तांडव को  क्यों अब तू पुकारता लाश्य और तांडव दोनों हमने भी किए हैं शायद तू यह सत्य नहीं जानता है अभी तू भारतवासियों को नहीं पहचानता है केवल सीमा लांघना ही तू जानता है अपना...
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Friday, December 22, 2017

Unborn love

Again today  that feeling came in my heart that was alike to an older one but this time It has created the realisation  of those  who always loving to me but I ignored only because of that negative thought I have ever listened only your own betrays but I forget they are only in this whole universe who can understand me who are always with me the time has passed and I too going to be passed from here I always...
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Thursday, December 14, 2017

बिछड़ी यादें

इन भटकती सी राहों में कुछ झिलमिल से चेहरे  याद आते हैं जो शायद कभी हमारे जीवन का  हिस्सा रहे हों मगर उनसे जुड़ी यादें  न झिलमिलाती हैं न डगमगाती हैं वह बस हमारे जेहन में एक सुनहरे पल के रूप में समाई होती हैं जो कभी हंसा देती हैं और कभी रुला देती हैं याद कराने की कोशिश करती हैं उन कुछ और यादों को जो अब याद नहीं आ पाती हैं शायद जिनकी उम्र थोड़ा कम थी जो अभी भी सभी के दिलों में हैं मगर थोड़ा जोर देने की जरूरत...
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Tuesday, December 12, 2017

छोटा बच्चा कोरा कागद होता है

छोटा बच्चा कोरा कागद होता है जैसा चाहो लिखा जा सकता है सभ्य चाहो लिखा जा सकता है असभ्य चाहो लिखा जा सकता है सपूत चाहो मिल सकता है कपूत चाहो मिल सकता है सर्वोत्तम चाहो मिल सकता है छोटा बच्चा कोरा कागद होता है जैसा चाहो लिखा जा सकता है लिखने वाला भी कातर हो ऐसा भी हो सकता है पर वह भी साहस लिखे  ऐसा भी हो सकता है सर्वोत्तम चाहो मिल सकता है तो क्यों नहीं अब इंसान है जागता ऐसा भी हो सकता है                     ...
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Wednesday, November 22, 2017

अफ़वाह

कल शाम एक अफवाह फैली उस दवानल के आग सी जैसे कोई तूफा आ चला हो या आसमान से बिजली आ गिरी हो सभी को इसकी भनक लगी मगर आवाज ना सुनाई दी उसी को ढूंढते हुए सब चौराहे में बनी मूर्ति के पास चौड़ी निगाह और बड़े कान लिए उसी पुरानी जगह आ  पहुंचे और देखते ही देखते एक भीड़ जमा हो गई कोई सकते में ही आया ...
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Sunday, November 12, 2017

हिस्सा एक खेल का

आओ तुम्हें किस्सा बताऊं उस समय के कांड का जो खुरापाती रहा होगा रचनाकार इस ब्रह्मांड का जब धरा देख आकाश को सूना सूना कुछ लगा होगा तभी उसने भी खेल नया खेलने को सोचा होगा आओ धारा तुम सहयोग करो चारों तरफ फैले इस जल का जिससे मिलकर खड़ा हो सके एक शानदार नमूना कल का तभी पवन,अनल ने मिलकर आकाश का सहयोग किया होगा ...
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Monday, October 30, 2017

पलायन १

जन्मभूमि के लिए दुखद,अत्यधिक दुखद, दिन था वह जब उसकी ही संतानें उसको छोड़कर जा रही थी शायद इस उम्मीद में कि कोई बेहतर और बेहतर कर्मभूमि मिले मगर वह जहां का रहे थे वहां इंसान जैसा कुछ न था रहना ऐसा जैसे माचिस के डिब्बे में तीलियां समेटी हो और बस एक चिंगारी काफी है उनको तबाह करने के लिए...
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Tuesday, October 03, 2017

पेट को दोष

जिंदगी के इस धूमिल होते सफर में एक शाम खयाल आता है  उन लोगो का जो सूरज डूबने के बाद भी नहीं थमते हैं खयाल कम और सवाल ज्यादा न जाने किससे जो इस प्रशासन को चला रहा है या फिर उससे जो इस दुनिया को चला रहा है उन जिंदगियों के लिए जो केवल पेट के खातिर नहीं थमती बड़ी ही नश्वर चीज है यह पेट जो केवल अपने खातिर किसी की जिंदगी तक नहीं बख्शता सारी मार काट केवल उसी के खातिर सोचा भी नहीं  जा सकता कोई इतना निर्मम कैसे हो सकता...
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Thursday, September 21, 2017

वह किसान

बादल भरे गुस्से में देखो बिजलियों का फरमान आया है कहर आएगा एक बार फिर हवाओं का पैगाम आया है लगती नहीं ये व्यर्थ कहीं भी गर्जना इन बादलों की शांत चितवन बैठे थे वो अब भड़की है ज्वाला सी कौन है जा भिड़ने वाला शांत पड़े इन शोलों से काम हुआ लगता है शायद मानव के इन बोलों से  लगता है उजालों को वजह स्वाधीन रहा होगा   किस्मत जिसकी देख खुदा भी बादलों से जा बोला होगा ताक रहा महीनों से वो आसमान को बारम बार उसके लिए...
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Saturday, September 16, 2017

ऊपर वाले के नाम

वह रोज..... शीश झुकाता है उन दराख्तों पर जो शायद केवल किस्मत वालों की सुनते हैं दरअसल उन सीढ़ीयों में भी कुछ बदनसीब ही बैठते हैं क्योंकि दिन तो उनके हैं जिनके हाथ से केवल कुछ सिक्के छूट जाते हैं अरे! तुम क्या सोचते हो थोड़ा सही जाओ उनका कुछ छूटता तो है उन हाथों पर जो केवल  उन दराख्तों पर फेंक आते हैं उनका क्या...
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Friday, September 15, 2017

वो गांव बहुत याद आता है

चांदनी सी वो रात भुलाकार सपनों की यादों में खोकर सुबह सवेरे जागू तो वो गांव बहुत याद आता है शहरो की ये छठा तो देखो निर्मल बहुत ही लगती है अगर झांक के देखो अंदर वो गांव बहुत याद आता है भरी दोपहरी के शोर में वैसे लगता कुछ भुला हूं जैसे अगर पेड़ छाव् में पाऊ तो वो गांव बहुत याद आता है दो पैसों की शिद्दत में जन्नत से जुदा हुआ था मैं सम्मान पाने को शायद उनका जिनसे बहुत जुड़ा था मैं झूठी कस्मे वादे निभाकर शहर को क्यों तू जाता...
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Tuesday, September 12, 2017

ये कविताएं

अच्छा है अच्छा है कि तुमने कविता लिखी बहुत अच्छा है कि तुमने कविता लिखी न जाने कितने जीवनों को संवारा कितनों को राह दिखाई कितनों में जीने की अलख जगाई आजादी से लेकर आज तक दंगो से लेकर राज तक आतंक से लेकर मातम तक उन मनों से लेकर आप तक और आप से लेकर आपके दिलों तक कितना योगदान है इन कविताओं का बच्चों के होठों में मुस्कान आ जाती जब बंदर मामा की शादी हो जाती चंदा मामा दूर से आ जाते मास्टर जी जब पहाड़े पड़ाते छोटे बच्चे घरों को...
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Sunday, September 03, 2017

कहते हैं कि हम इंसान हैं

कहते हैं कि हम इंसान हैं इंसान के अंदर एक मानव है जो अनल,पवन ,नीर,आकाश और पृथिवी से बना है और इसके भी अंदर इससे भी बड़ा इससे विराट पंचतत्वो को समाहे हूए एक आत्मा है जो सूक्ष्म है जो अनंत है जो सास्वत है जो सदैव है जो निराकार है और इन सभी को समाहे हुए बनता एक इंसान है कहते हैं कि हम इंसान हैं इस इंसान के अंदर एक दानव है जो हमारा काल है जो अहम,स्वार्थ,ईर्ष्या,लोभ से बना है और इसके भी अंदर इससे भी बुरा इन सभी को समेटे हुए एक...
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Saturday, August 19, 2017

असमंजस

एक दिन सहसा इस बोझिल जिंदगी से उबकर न जाने उसके मन मे क्या खटका असमंजस में वह कूद गया गांव किनारे कुँए में नहीं, अरे नहीं वह बच गया कुवाँ सुखा था और शायद पहली बार सुना कोई बच गया सूखा पड़ने से.....? ...
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Thursday, August 17, 2017

छोटे बच्चे स्कूल चले

उछल उछल कर ,फुदक फुदक कर भोले भाले स्कूल चले नाचते गाते ,मस्ती करते छोटे बच्चे स्कूल चले नन्हे मुन्हे, भोले भाले बड़े बड़े अरमान हैं पाले रोज सवेरे होले होले सबके प्यारे स्कूल चले कदम कदम पर ,मोड़ मोड़ पर सब जन को सम्मान दिए हस्ते हस्ते ,जाते जाते नयी उमंग उल्लास लिए सबके न्यारे , स्कूल चले फूलों के झुरमुट हो जैसे मनमोहक सी छठा बिखेरे सागर के मोती हो जैसे नयी चमक मुस्कान लिए आँखों के तारे स्कूल चले छोटे बच्चे स्कूल च...
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