The words of deep emotion are here.

पंखे में धूल

Poetry comes from the highest happiness or the deepest sorrow. - A.P.J.ABDUL KALAM

Friday, December 28, 2018

अनजान रास्ते

किस्सा-१ देखो कैसे बिछड़े, भटके वह अनजाने, रास्ते कैसे मिल जाते हैं कौन जाने कहां शुरू जाने कैसा सफर किया मगर एक दूजे को पाते ही देखो कैसे चीनी और पानी के जैसे घुलमिलकर एक साथ हो जाते वह अनजान, रास्ते किस्सा-२ उस बिंदु तक एक साथ ही आए मानो जैसे एक ही जीवन एक ही आत्मा साथ खेलना खाना साथ सोना और जागना भी साथ फिर उस बिंदु पर आकर जड़ और तने हों जैसे बिछुड़ गए जैसे कभी मिले ही ना हो वह अनजान, रास्ते किस्सा-३ उस एक बिंदु पर, आकर कुछ मिलते आकर कुछ बिछड़ते फिर मिलने का सुख बिछड़ने का दुख हमारे मन में क्यों समाता यह जीवन है, यहां कुछ मिलेंगे, कुछ बिछड़ेंगे और...
Share:

Sunday, December 16, 2018

क्या तुम्हें पढ़ना नहीं आता

कुछ निशान बाकी हैं कागजों में, कलम के अरे नहीं, स्याही के जो लिखे गए थे पढ़ने के लिए,  जानने के लिए, समझने के लिए उन बातों को जो उन शब्दों में हैं शब्दों के बीच में हैं मगर क्यों, शब्द केवल अर्थ तक रह गए क्या तुम्हें पढ़ना नहीं आता  ...
Share:

Friday, November 09, 2018

दो चिड़ियां

पेड़ से निकली  दो डालें  उन दो डालों में बैठी दो चिड़ियां आपस में बातें करती कल या तो यह  पेड़ कट जाएगा या जंगल में आग लग जाएगी यदि मैं जली तो तुम मुझे खा लेना और यदि तुम जले तो मैं तुम्हें खा लूंगी तभी वहां एक शिकारी आया और दोनों को मारकर अपने साथ ले गया तब भी जीवन न जाने क्यों यूं ही गुजर जाता है बेमतलब की बातों में ...
Share:

Tuesday, October 30, 2018

कवि

देखो कलम यह, टूट चुकी है स्याही साथ में, सूख चुकी है बिना कलम और स्याही के, कवि बेचारा क्या करेगा नाखूनों से कलम बनाकर, खून की स्याही भरे...
Share:

Thursday, October 25, 2018

आंखो की रोशनी

उन आंखों के लिए कितना सुखद होगा वह क्षण जब सालों बाद मरू भूमि में हलचल शुरू हुई तेज हवाएं चली, फिर से बादल घिरे, और  बारिश हुई और एक बार फिर से जीवन का संचार हुआ  जैसे उन आंखों को फिर से रोशनी मिल गई हो...
Share:

Sunday, September 23, 2018

राह दिखाएं

ऊंचाई से अगणित रफ्तार पर्वतों को चीर पार स्वयं अपनी राह बनाते मैदानों में नदियां आती या फिर पर्वत रोकते राहें चंचलता पर अंकुश लगाएं भूली भटकी धारा को जीवन का जो मार्ग दिखाए जैसे भटकते राही को यदि राह तूने नहीं दिखाई फिर क्या अधिकार रह जाता है बुरा भला चिल्लाने का अंधेरों में दोष गिनाने का संसार की थू करने का वह बने आतंकी, चोर, हत्यारा या फिर राजनीति का प्यारा दिया जलाने का अवसर तो था अंधेरे मिटाने का अवसर जो...
Share:

Friday, September 21, 2018

किसान

धोती पहने, कपड़ा बांधे नंगे पैर निकलता किसान तड़पती धूप, कड़कती सर्दी खेतो में रोज दिखता किसान देश बंद हो, मजदूर दिवस हड़तालें या फिर रविवार सत्य मानों या ठुकरा दो जीवन एक संहर्ष किसा...
Share:

Friday, September 14, 2018

मोहक बड़ी तुम लगती हो

(वाणी को संबोधन) हे! छिछोली चंचल प्रिये मोहक बड़ी तुम लगती हो अंदर से कुछ  बहार से कुछ फिर शांत कैसे रहती हो घमासान क्या होते नहीं भीतर से तोड़ते नहीं टूटे हुए टुकड़े भी तो कातरता से चुभते हैं फिर निज मन को कैसे  झुठला कर रखती हो हे! छिछोली चंचल प्रिये मोहक बड़ी तुम लगती ह...
Share:

Sunday, September 02, 2018

नव युग की राह

मुक्त सा है सफर जीवन में उठे कई भवर टूटते सपनों के पल अनेकों प्रयास हुए विफल आओ सब विफलताओं से जूझते हम चलें नव युग की राह को मोड़ते हम चलें नव पंथ पर चलने की हिम्मत जुटाई किसने है अंधियारों में उजाले की ज्योति जलाई किसने है चलते हुए जमाने को, सबने ही कोसा काल की गति को, सबने ही दोसा कौन कहता हर पल  ठोकरें बनाती मजबूत हैं बिन कष्टों के जीवन का क्या कोई वजूद है पल भर दुख पर अनंत खुशी क्यों ढले नव युग की राह को मोड़ते...
Share:

Saturday, August 25, 2018

पलायन ३

यह तबाही उनकी नहीं जन्मभूमि की अधिक थी जो उनको अपनी गोद में हंसते खेलते देखना चाहती थी मगर वहां उनके दफन होने को दो गज जमीन भी नसीब न थी और शायद यह उनके ही कर्म होंगे क्यूंकि आज दोनों जगह सन्नाटा पसरा है। पलायन १- पहले इसे पढ़...
Share:

Thursday, August 16, 2018

इशारे

घर के किसी कोने में अखबारों का ढेर देख है कभी सूना है कभी उन आवाज़ों को उन बातों को जो वह आपस में करते हैं जिन बातों से वह झगड़ते हैं मत करना कोशिश कभी उनको सुनने की गलत समझ बैठेंगे तुम्हें चाहे खुद जल जाएंगे  मगर ख़ाक कर देंगे तुम्हें ऐसा ही फल होता है दूसरों की बातें चुपके से सुनने का यहां की बात वहां कर नज़रों में अच्छा बनने का क्यों न अखबारों को कुछ काम दिया जाए कम से कम अफवाहों को उनके कानों से बचाया जाए&nbs...
Share:

Wednesday, August 08, 2018

खुशी के पल

देखा है कभी चश्में को, नाक से लिपटते हुए देखा है कभी बालियों को, कान से चिपकते हुए जैसे गले में टाई और, हाथ में घड़ी लिपट जाती है ऐसे ही बचपन तुझसे, जिंदगी लिपटना चाहती है बस छोटे से कद तक, सिमटना चाहती है खुशियों के दामन में, खोना चाहती है जी फाड़कर नादानों सा, हंसना चाहती है भीड़ से कहीं दूर ये जिंदगी, बचपन चाहती है गिरे उठे जख्म लगे उम्र की ठोकर पड़े घाव हुए लालिमा छाई बचपन तेरी याद आई होश आया नज़रें अब, कमजोर हो चुकी हैं फिदाओं की बहारें, कहीं खो चुकी हैं खुशियां थी जो अपनों में, हिस्सों में बंट गई कुछ पल बिताई यादें, धागों सी सट गई आस कहीं...
Share:

Sunday, July 29, 2018

हिमपुत्र

नाटा कद, मुस्काता चेहरा हिमपुत्र की शान है छोटी आंखें, चौड़ा कपाल यही उसकी पहचान हैं भ्रमित करती माथे की शोभा मोहित करे कंठ की वाणी साहस तेरा देख पर्वत और नतमस्तक है हर एक प्राणी गौरव संस्कृति दर्शाती बोली सदैव आनंदित जीवन होली नयनों से तेज छलकता अपनों के लिए ही हृदय धड़कता समर छेत्र में भीम भुजाएं छाती है मजबूत शिलाएं कोमल हृदय विशाल इतना दुश्मन को भी गले लगाए प्रत्येक कर्म में तन मन समर्पित देव भूमि है इनसे अर्जित आंख बिछाए रिश्तों की शोभा और निष्ठा में जीवन यह अर्पित देवात्मा की संताने दशो दिशाएं ख्याति पाए देवभूमि में जन्मे हिमपुत्र त्रिलोक...
Share:

Sunday, July 22, 2018

भीगी सड़के

शहर की भीगी सड़के जगी सुबह तड़के चारों तरफ सूना पाती आंखे फाड़े देखे जाती मिजाज बदला सा शहर का रंग उड़ा लाली छाई सूरज उगा, सूरज डूबा चांदनी छाई घनघोर घटा में अब भी इतनी लाली क्यों  रात दिन सुनसानी में मानवता भड़की थी नए दिन की आस में शहर की भीगी सड़कें ...
Share:

Friday, July 20, 2018

पतझड़ की पीली पाती

   पतझड़ की पीली पाती  अपने रोदन गीत गाती  आस कितनी नयनों को  जीवन संसार बहारों की  दुख के घिरे हैं घने बादल,  आस मधुप फुहारों की  नयन अश्रु गिरने पर   वापस कहां जा पातेेमरु की शिथिल भूमि में  मोती से चमकते   टूटी टहनी   अब साथ कहां दे पाती  पतझड़ की पीली पात...
Share:

Friday, June 29, 2018

भूमि से छल

कोमल भूमि की बाँहों में  शूलों से चुभते हैं वह दाग  जो युद्ध समर में  जल बहाव से बहाए गए  जिस तरुण भूमि ने  जाने कितने ही  दर्द झेले हैं  और अपने ही सपूतों का  लहु संजोया है  मगर उससे अधिक पीड़ा  उसे उसके ही समर में   तब मिली जब  उसमे उगाने वाला  उसमे ही जीने वाला  उसे अपनी मां समझने वाला किसान   कुछ लोगो द्वारा छला गया  यह खाद रुपी दाग  भूमि की उर्वरता पर प्रश्न थे  पेटों पर मरहम थे  जो उन शूलों से  अधिक तेजी से चुभते...
Share:

Wednesday, June 20, 2018

मकड़ी के जाले

आज सालों बाद उन मकड़ी के जालों में कुछ फंस आया वह जाले गांव के बीचों बीच एक पुराने घर के दरवाजे पर लगे थे शायद आज उन मकड़ियों का अंदाजा भी सही था  वह फंसने वाले कुछ इंसानी प्रजाति के लोग थे जो कुछ सालों  पहले उस घर को ठुकरा गये थे और आज उन्हें शहर ने ठुकरा दिया ...
Share:

Friday, June 15, 2018

दीया

रात की सुनहरी रौशनी में  एक छत के नीचे  दीया जलाए  कुछ बच्चे  किसी देश का  भविष्य लिख रहे थे  उस मिट्टी के दीपक के नीचे भले ही अंधेरा था मगर उसकी रोशनी में सामने से बैठ बड़ी तन्मयता से  वह बच्चे पढ़ रहे थे भले ही दीपक  अंधेरे को अपने अंदर ही  समेटना चाहता था  ताकि उन बच्चों का ध्यान वहां न जाए उसने भी सुना था  बच्चे हर चीज को  बड़ी जल्दी सीख जाते हैं  और वह...
Share:

Wednesday, June 13, 2018

अंधेरी कोठरी

छोटे रोशनदानों से चांद की रोशनी अंधकार भरी कोठरी में कुछ लोगों से छिपकर कुछ वीरों से मिलने चली आती थी जहां पीने के नाम पर एक मटका, सोने के नाम पर एक कंबल, बड़े ही संहर्स पर मिले  जहां एक समय क्रांतियों ने जन्म लिया देश की नीतियां बनी वहां समय समय पर कुछ बहादुर लोग खुशी खुशी आते और सुनहरे चांद से संदेशा बयां करते वह चारदीवारी आज भी वैसी ही है फर्क इतना है आज का चांद  उनसे बातें नहीं करता कुछ छोटे चोर,लुटेरे,जेबकतरे आज...
Share:

कतरा : कागज का

वह कतरा कागज का कितने अश्रु रोता है जिसको समेटने हर व्यक्ति समर्पित रहता है स्वचलित समय की कितनी भारी मांग है जब रोटी का टुकड़ा भी उसी के नाम पर बिकता है एक और रोता है उसके अलावा जिसकी अब बारी है कागज का टुकड़ा बनने की आदमी का सुख, चैन और ईमान बेचने की। Read another : पंखे में धूल ...
Share:

Saturday, June 09, 2018

फल वाला

मुख्य सड़क के किनारे एक चौपहिया  बड़ी शांत अवस्था में प्रतीक्षा कर रहा था वह लाखों,करोड़ों वाला नहीं बल्कि फलों के एक ठेले वाला किसी की तड़पन बांधे दुखों को संभाले पानी छिडकता फलों वाला था उसके नीचे कुछ बेकार पड़े ना बेचने योग्य फलों को फेंका था जिसको बड़ी देर से एक सुस्त बच्चा निहारता,देखे जाता थोड़ी देर में चुप चाप  वह वहां पर आया गिरे फलों को उठाया और चला गया Check another post ...
Share:

Friday, June 08, 2018

कलम

तलवार की धार में,खून के कुछ छीटेंसूखे हुएएक म्यान में कैद हंसते है बड़ी नीर्लजता सेउस तीखी धार परजिसने उनको जन्म दियाक्यूंकि उससे भी तेज,धारदार,असरदार चोट करने वालीखुले आम घूमती है,सस्ते में बिकती है,और वह कलमबड़ी ही शांत दिखती है...
Share:

Wednesday, June 06, 2018

वजह

कितना अच्छा हैएक एक करके सभी प्रजातियां  लुप्त हो रही हैं वनस्पतियों की, जानवरों की, मानवता की, वह भी केवल एक के कारण क्यों ना ऐसा हो उस एक का ही विनाश हो जाए  और एक नया संसार फिर से उभरे...
Share:

Tuesday, June 05, 2018

बाढ़

कल शाम की  कहर बरपाती बाढ़ सब कुछ ले गई जो समान उसने कुछ पलों में ही बहा दिए मगर ना ले जा पाया वह बेचैनी, बिछड़ने की वह खुशी, मिलने की और वह मानवता जो उसके खिलाफ खड़ी होकर मानव को बचा रही थ...
Share:

Sunday, June 03, 2018

डाकिया

खाकी की वर्दी पहने  हर रोज एक डाकिया हर घर में मीलों का संदेश जमाने की मुस्कान अपनों का सहारा कागज के टुकड़ों में बांट जाता है उनकी कीमत  नहीं लगाई जा सकती उस मीलों के सफर में एक बंधन को साईकिल से बांधता हर रोज दस्तक देता है और एक बात जो नजरअंदाज हुई जरा खुदा से पूछो क्या कभी उसके लिए भी कोई खत आया होगा क्य...
Share:

Monday, April 30, 2018

टूटता तारा

जाने कितने टिमटिमाते तारे यूं ही टूट जाते हैं उस ऊंचे आकाश में जिनको देख आज भी बचपन की तरह दो अंगुल मिला लेता हूं आज भी कुछ सपने, कुछ ख्वाहिशें मांग लेता हूं यह सब मेरी मां ने मुझे सिखाया  और मौत के बाद  मेरी मां भी आसमां का एक तारा बनी जो आज भी खुद टूटकर मेरे सपने पूरे करती है और आज भी मेरी मां के एहसान  मुझ पर भारी है...
Share:

Sunday, April 29, 2018

लोरी

मां,सुनो ना यह लोरियां क्या होती हैं? इस नई सदी का  एक नया सवाल जिसके जवाब में गूगल कुछ सुंदर से चित्रण दिखा देता, या कभी कुछ गाने जो किसी नए भाव को जोड़ने में असक्षम है मगर विरासत तो मां से आती है, पिता से आती है, घर से आती है, समाज से आती है, फिर इसको ना जानने में नई पीढ़ी का क्या दोष ...
Share:

Friday, April 27, 2018

मनुष्य प्रगति

उन शमशानो में अब लाशें नहीं आती और कब्रिस्तानों में न जाने कब से नई कब्र भी नहीं बनी दोनों रूठे भाई बहन से अब कोई नहीं मिलता सुनने में आया था जमाना बदल गया अब घरों के अंदर ही शमशान मौजूद हैं बीच सड़कों में ही कब्रस्तान खुदने लगते हैं शायद मनुष्य प्रगति असीम है,अकल्पनीय है यहां तक कि खुदा भी नहीं सोच पाता Check another pos...
Share:

जीवन की आस

वह बूढ़ा  बरगद का पेड़ गांव के बीच में किसी मीनार की भांति अंबर की ऊंचाई से निहारता चारदीवारी को मूर्छित पड़े शमशनो को मुर्दा कब्रिस्तानों को किसी तरह कोई मुझे काट एक छोटा सा मॉल बना दे ताकि कम से कम खुशी नहीं जीवन लौट तो आए  उस गांव मे...
Share:

Tuesday, April 03, 2018

एक पत्थर

कहा ना मान गया हां हूं मैं पत्थर यही थी ना जिद तुम्हारी सही तो कहते हो हां हूं मैं पत्थर माना कि थोड़ा ठोस हूं मौसम का कोई असर नहीं पड़ता रोज की ठोकरों की फ़िक्र नहीं करता हां हूं ना,वही पत्थर जिसको भोर से पहले तुमने तालाब में फेंका था उस 'टप्प' की आवाज ने बस तुम्हारा ही दिल जीता था वही पत्थर जिसको पैरों से खेलते तुम मीलों चल जाते थे और अपने इस लंबे सफर का हमसफ़र बनाते थे वही पत्थर जिसने घर के कांच से माना थोड़ा बैर की...
Share:

Thursday, March 08, 2018

फिर से एक मौका

उस नदी के बीच बहाव में खड़ा एक आदमी एक छड़ी के सहारे  कुछ ढूंढ रहा था जब मेरी नजर नदी के दोनों तरफ जिंदगी की कश्मकश देखकर थोड़ा मचल बैठी थी और फिर देख बैठा जिंदगी का एक कड़वा सच कुछ अपनी पूंजी मंदिरों में, और कुछ बाजारों में बहा आए उस चस्मे वाली आदमी की फोटो वाले कागज का घमंड भी यहां चूर हो गया सब अपना रोना रोने में व्यस्त और जिंदगी पैसा कमाने में व्यस्त आखिर वह नदी इनके कौन से पाप धो रही थी जिसमें उस दिन से पहले इन्हीं...
Share:

अजनबी नदी

जो धाराएं निकलती हैं उन पहाड़ों के बीच से अपनी छाप छोड़ती निकल जाती हैं भ्रमण पर किसी अजनबी शहर के कोई अनसुनी जगह के जहां उनका अपना कोई नहीं होता हर किसी का परायों सा व्यव्हार, मगर पराया भी कोई नहीं होता उसके शहर में प्रवेश करते ही सिर में कूड़ा रख दिया जाता है भला अतिथि देवो भव का भाव न जाने कहां रह जाता है कूड़े से लतपत प्लास्टिक से लिपटी और मल मूत्र में नहाई धरा की प्यास बुझाती मानव का संकट मिटाती उस मां सम नदी को अब...
Share:

Friday, March 02, 2018

अमर होलिका

रंगों के उल्लास में भरपूर जीवन रंग तुम संजो गई इस बार भी अपनी देह जलाकर होलिका तुम अमर हो गई सूना है तुम्हारी गोद में एक नन्हा बालक प्रहलाद भी था ब्रह्म वरदान चाहे था तुमको वह बस नन्हीं जान ही था अपने अहं में चूर होकर तुम कैसे यह कहानी गढ़ गई जिंदा तो शायद प्रहलाद रहा था फिर अमर तुम कैसे हो गई जले कितने ही नीरव,माल्या इन पुतलों  क्या जाता है वजूद मानव खुद को रहा त्यौहार हर वर्ष ही आता है इन अनेकों रंगो से भरपूर विषय...
Share:

Wednesday, February 21, 2018

तौलिया

आज आंगन के कोने में रखा एक कपड़ा नजर आया जिसने थोड़ी देर पहले निचोड़कर,मरोड़कर और बहुत कष्ट झेलने के बाद भी फर्श के सारे कीटाणुओं को अपना दुश्मन समझ मर डाला था ये वही पुराना हो चुका तौलिया जो कुछ वक़्त पहले, कभी दादाजी गले में, पापा के कंधो पर, मां के माथे पर रहा करता जिससे कुछ समय पहले मुंह पोछना और हाथ पोछना  जैसे काम लिए जाते यह वही नया तौलिया था जिसे मां माथे में पहन पड़ोसन को चिढाया करती यह वही यादों का तौलिया...
Share:

Tuesday, February 20, 2018

The cracks in house

I heard  the cracks in the house symbolise something but once I caught them whispering the uneasy moment I had but I remain quite carefully listened them it was not about their colour not about their future and even not about the wealth hanging over them like human do what they are whispering is we are a part of this earth the same soul we have If we are derived from same soul so we are one not different the only thing human not talk about the humanness serve love,get love if we all have to end in same soul why...
Share:

Friday, February 16, 2018

पंखे में धूल

उस छत से लटकते पंखे में समय समय पर  कुछ धूल जम जाती  और कभी कभी कुछ जाले भी लग जाते  जब भी मैं,सीधा लेट सो रहा होता तो छत के उस दृश्य को देख  एक डरावना एहसास होता  मगर गर्मियों के आने से पहले मुझे वह पंखा,हमेशा साफ करना पड़ता था  कभी कभी ऐसा लगता था जैसे वह पंखा मुझसे कुछ कहना चाहता हो मगर मैं अभी छोटा ही था,नासमझ था और जैसे जैसे मैं बड़ा हुआ  मैंने एक बात और गौर की  धूल जाड़ों तक आते-आते  एक मोटी परत सी बना जाती  और अगर एक भी भिनभिनाती मक्खी...
Share:

Thursday, February 15, 2018

धूल

हवा के साथ फुहार सी निर्झर उड़ती जाती धूल मौसम में बहार सी नित्य एहसास कराती धूल बारिश में सौंधी खुशबू खींच कहीं से लाती धूल शरीर लतपत हो जाए गर अपनापन ले आती धूल बच्चों के खिलौने की कमी दूर करती धूल जमीन से ऊंचा उठने पर जमीं पर पटक जाती धूल बंजर पड़े गांवों को चादर सी ढक जाती धूल आंगन की उन यादों पर मरहम सी छा जाती धूल तूफानों से दंगल करती कहर सी बन जाती धूल कभी नवीन संदेशा बनकर लंबा सफ़र तय कर जाती धूल यादों...
Share:

Monday, February 12, 2018

The dream

When getting out of bed Reminds me the dream I have seen I make lot efforts But only beutiful of those Remain for few moments Some for few days Gives the painless relieve After every journey of failure The dreams which create A great suspense How all things are  So closer to me Are these real Atleast not fake  Are the incidents Going in our daily life But some says Dream have stopped to came  In my sleep The...
Share:

Sunday, February 11, 2018

Shining drops

The drops Shines in light Like a diamond Which fell on your screen Which are quite salty Taste them Called tears Are the symbols, Are the means, Are the way, To show your happiness After  Writing the beautiful words You have collected After a lot efforts Don't go them waste Keep on writing Fill the sorrow  With words of lov...
Share:

Wednesday, February 07, 2018

जिंदगी : एक पहेली

जब मुझसे कहा गया ,जिंदगी की हकीकत साबित कर मैंने पूछा अपनी जिंदगी से, अपने अंदर से क्या यह संभव है कैसा भविष्य दिया मुझको , कैसे तेरा अतीत वया करू क्या इनसे सच्चाई बोलू,क्या पैगाम जारी करू सच बोलू तो रो जाएंगे,कहानी गढ़ू तो खो जाएंगे केवल कुछ पल में ही जिंदगी कैसे साबित करू क्या सीख जाऊंगा यहां से,खुद से कैसे बात कहूं अपनी मर्ज कैसे बताऊं, या औरो की बात कहूं एक अवसर जो मिला है,उसका कैसे अब बखान करू बिना किसी मेरे कर्म के,एक...
Share:

Thursday, February 01, 2018

जिंदगी

सुबह  से लेकर शाम तक थकान है जिंदगी छोटी छोटी बातों में आने वाली  मुस्कान है जिंदगी मनुष्य के सत्कर्मों की पहचान है जिंदगी हर गिरते पड़ते क़दमों पर एक पैगाम है जिंदगी कभी संसार की मोहमाया से डूबी है जिंदगी कभी किसी पश्चाताप का आवरण है जिंदग...
Share:

Tuesday, January 23, 2018

विधाता से प्रश्न

कौन है सूत्रधार यहां का एक प्रश्न है मेरा उससे जिसके तुम गुणगान करते हो एक दिन मिलाना मुझसे असत्य कहो मगर सच है काला भड़केगी जब क्रोध की ज्वाला कहा की जल्दी थी तुमको तुमने कैसा इंसान रच डाला अोत प्रोत स्वयं के अंदर चला रहा नित्य नव दंगल क्या पाने कि चाह है इसकी किस दिशा में राह है इसकी कठपुतला है मिट्टी का स्मृति स्वयं की जानता है कर्म अपने नित्य भूलकर अहम निश्चय ही पालता है स्मृति नित्य करता जन को भ्रमित कुबुद्ध...
Share:

Thursday, January 18, 2018

इंतजार तो है

उस अनकही सी बात काइन लम्हों में साथ काइंतजार तो हैआने वाली उन यादों काहंसाने वाली उन बातों काइंतजार तो हैप्यारी सी एक आस काऔर अपनों के पास का इंतजार तो है उन गुदगुदाती सी बातों काऔर सपनों से भरी रातों का इंतजार तो है मृदू ऋतु सावन का और निर्झर उड़ती पवन का इंतजार तो है गुजरते हुए राही का और हमेशा तत्पर सिपाही का बिछड़ने में दर्द काऔर जाड़ों में सर्द काइंतजार तो है इस युग में संस्कृति का और युवा में अमर जोश का मेहनत...
Share:

Sunday, January 07, 2018

अखबारों में खबर

सूना है अखबारों को नई खबर मिल गई जब जिंदगी की कश्ती उम्मीदें हारकर डूब गई कुछ हंगामे,कुछ तमाशे हुए मगर सब बेकार अब अखबारों को एक और नई खबर मिल गई जब मौसमों की मार में गरीबों की हालत बिगड़ी गई मगर ऐसी पड़ी कि असहन हुई तब कुछ दान हुए,सम्मान हुए फिर भी जिंदगियां डूब गई और अखबारों को एक नई खबर मिल गई ये आते जाते मौसम थे और सावन बेईमान इस भादौ की लौ ने बहुत किया परेशान हर साल ये मौजूद हैं फिर भी जिंदगियां डूब गई और...
Share:

Tuesday, January 02, 2018

बिन मंजिल का मुशाफिर

आज आंखों से दोबारा आंसू छलके जब अकेली चलती राहों ने अपनेपन का एहसास कराया एक बात इसमें  बड़ी गौर करने वाली थी उन राहों में केवल एक मैं ही अकेला न था सब अपनी राह में अजनबी मुसाफिर की भांति जा रहे थे न जाने  कहां की जल्दी और जिंदगी की उलझन ने उन्हें अंधा बना दिया वह अपनो को पहचानने तक को तैयार न थे और उनके परिवार दो चार से बड़े न थे उन चारों पर जो  छत्रछाया होनी थी वह किसी वृद्धआश्रम में अपने दिन काट रही...
Share:

Indiblogger